विचार: मोदी से पूर्व की भाजपा और मोदी के बाद की भाजपा

Vipin Yadav
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इस आर्टिकल में प्रधानमंत्री मोदी से पहले की भाजपा तथा उनके नेतृत्व वाली भाजपा में अंतर और साथ ही वह कारण भी बताने के प्रयास किए गए हैं, जिससे नरेंद्र मोदी कालीन बीजेपी को ना सिर्फ़ उत्तर से दक्षिण तक राष्ट्रव्यापी जनसमर्थन प्राप्त हुआ, बल्कि दो-दो बार केंद्र में सरकार बनाने का भी मौका मिला. अब अगले कुछ ही महीनों में तीसरी बार जब देश में चुनाव होने जा रहा है, तो इसमें भी मोदीनीत भाजपा का कोई पीछा तक नहीं कर पा रहा है. तो चलिए शुरु करते हैं  ऐतिहासिक तथ्य से...


2014 के बाद की भाजपा


जिस तरह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में “गांधी से पूर्व की कांग्रेस” और “गांधी के बाद की कांग्रेस” में अंतर सर्वविदित है वैसा ही कुछ अंतर “मोदी से पूर्व की भाजपा” और “मोदी के बाद की भाजपा” में भी देखा जा सकता है. जिस तरह से गांधी से पूर्व कांग्रेस एक अभिजात्य वर्गीय पार्टी मात्र बनकर रह गई थी, लेकिन वहीं गांधी के पदार्पण के बाद पूरे देश में कांग्रेस जन-भावना बनकर उभरी, जिसका परिणाम रहा कि भारत माता की मुक्ति के लिए संघर्षरत अनेकोनेक शक्तियां एक बैनर के नीचे संगठित हुईं और भारत माता को अंग्रेज़ी बेड़ियों से मुक्ति मिली. इसी तरह आज़ाद भारत में भाजपा की राजनीतिक यात्रा को भी देखा जा सकता है.


लेखक: अमित यादव व सुलेखा पाण्डेय।

हालांकि, ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि मोदी से पूर्व की भाजपा किसी जाति या वर्ग की विरोधी थी, वह तब भी पिछड़ी जातियों को आरक्षण के लिए मण्डल कमीशन लागू किए जाने के ना सिर्फ पक्ष में थी, बल्कि मण्डल कमीशन की रिपोर्ट लागू करने वाले वी पी सिंह सरकार के साथ उसका समर्थन था, इतना ही नहीं 1989 के लोकसभा चुनाव में मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू हो जैसी घोषणा जनता पार्टी के बाद भाजपा ही कर रही थी. इसके साथ ही नरेंद्र मोदी से लेकर कल्याण सिंह, बाबू लाल गौर, उमा भारती जैसे पिछड़े अति पिछड़ों को राज्यों में सीएम बनाने और यहां तक दलित समाज से आने वाली मायावती को भी मुख्यमंत्री बनाने में भाजपा के योगदान को नकारा नहीं जा सकता. 


बाक़ी, हिंदुत्व से जुड़े अन्य कार्यों में भाजपा पहले भी सबको साथ लेकर ही चलती थी, लेकिन इसके बावजूद भी भाजपा कभी इतनी व्यापक समर्थन नहीं जुटा पाई, देश के विशाल जाति समूह में भाजपा के प्रति अविश्वास ही रहा, एक बड़ी आबादी भाजपा को शंका की निगाह से देखती रही जिसका परिणाम रहा कि भाजपा किसी तरह राज्यों में तो सरकार बनाने में सफल रही, लेकिन कभी केंद्र में पूर्ण बहुमत की सरकार नही चला पाई.


मोदी नाम की आंधी 


अब जानते हैं कि 2013 के बाद मोदी का नेतृत्व प्राप्त होते ही ऐसी कौन सी आंधी चली कि भाजपा को ना सिर्फ़ आधे से अधिक राज्यों में सरकार बन गई, बल्कि केंद्र में दो-दो बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनी और अब तीसरी बार भी वही आंधी चलती दिख रही है, जिसमें दूर-दूर तक कोई पीछा नहीं कर पा रहा है. मोदी नाम के जादुई आंधी के पीछे सात प्रमुख कारण है जिनके चलते भाजपा को शहरी, सवर्ण मतदाताओं के साथ-साथ दलितों, पिछड़ों, अतिपिछड़ों का व्यापक जनसमर्थन प्राप्त हुआ. जिसने मोदी को अजेय योद्धा बना दिया है.


हिंदुत्व का सबाल्टर्निकरण


इसमें पहली वजह “हिंदुत्व का सबाल्टर्निकरण” है. मोदी के नेतृत्व ने हिंदुत्व का सबाल्टर्निकरण किया गांव-गांव तक दलित पिछड़ों, अतिपिछड़ों, महिलाओं एवं अन्य मध्यम तथा गरीब तबकों में हिंदू देवी-देवताओं की मूर्ति स्थापना पूजा पाठ समेत तमाम हिंदुत्व से जुड़े कार्यों को इन्हीं वर्गों के नेतृत्व में किया जाने लगा, अभिजात्य वर्ग धार्मिक कार्यों से दूरी बनाते या सहयोगी के रूप में दिखाई दिया. धार्मिक कार्यों में राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ से जुड़े तमाम लोगों तथा संगठनों का प्रत्यक्ष वा परोक्ष समर्थन प्राप्त हुआ. 


लीक से हटकर चलना 


दूसरी वजह मोदी के “रिकॉग्निशन, रिप्रजेंटेशन और रिडिस्ट्रिव्यूशन” की पॉलिसी को माना जा सकता है. तमाम छोटे छोटे जातीय समूहों को रिकॉग्नाइज किया गया, उन्हें पॉलिटिकल रिप्रजेंटेशन दिया गया, तमाम गरीब कल्याण योजनाओं के द्वारा उनमें वेल्थ का रिडिस्ट्रिव्यूशन किया गया. तीसरा कारण “पिछड़ा-अतिपिछड़ा गौरव” है. मोदी के नेतृत्व ने पिछड़ी अतिपिछड़ी जातियों में गौरव का भाव भर दिया, कि उनके बीच का आदमी देश में शासन के इतने शीर्ष पद पर पदासीन हो रहा है. चौथा कारण “संस्थाओं का बृहद लोकतंत्रिकारण” है. मोदी ने “सबका साथ-सबका विकास-सबका प्रयास” के फार्मूले के तहत तमाम छोटी छोटी पार्टियों का साथ लिया, परिवारवाद और जातिवाद से हटकर तमाम कम संख्या वाली जातियों को टिकट दिया. खुद ओबीसी प्रधानमंत्री होने के बावजूद पहली बार सत्ताई ओबीसी मंत्री बनाए, पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा दिया. 


राष्ट्रवाद का विस्तार 

 

नीट के ऑल इंडिया कोटे में ओबीसी आरक्षण लागू किया, नवोदय एवं सैनिक स्कूलों में ओबीसी कोटा दिया, ओबीसी स्टूडेंट्स को पीएचडी के लिए नेशनल फेलोशिप देने की घोषणा की, प्रोफेसर- एसोसिएट प्रोफेसर- असिस्टेंट प्रोफेसर भी इन वर्गों से बड़ी संख्या में बनाएं गए जिनकी सीटों को अब तक वामपंथी-कांग्रेसी बुद्धिजीवियों द्वारा एनएफएस कर दिया जाता था, अतिपिछड़ी जातियों को साधने के लिए रोहिणी कमीशन गठित किया गया जिससे मोदी को तमाम संस्थाओं में लड़ने वाला एक मजबूत बेस मिला. पांचवीं वजह “राष्ट्रवाद का विस्तार” है. मोदी से पूर्व राष्ट्रवाद का विचार शहरों और उसमें भी एक खास कथित बुद्धिजीवी वर्ग तक ही सीमित था मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रवाद आमजन की भावना बनी. 


ग्रेजुअल धार्मिक सुधार


छठवीं वजह “ग्रेजुअल धार्मिक सुधार” है. जहां भाजपा के ऊपर विपक्षी पार्टियां कट्टरधार्मिक और दकियानूसी होने का आरोप लगाती रहीं हैं वही सारे विपक्षी दल खुद राम मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा समारोह के अवसर पर कट्टरधार्मिक शंकराचार्य के समर्थन में खड़े रहें और मोदी ने धार्मिक सुधार का मार्ग अपनाया और भारतीय राज्य के फैसले के साथ मजबूती से खड़े रहें. वैसे नरेंद्र मोदी हमेशा ही धार्मिक सुधार के पक्ष में रहे हैं. वें ढोंग-पाखंड-आडंबर का भी कई बार चुपचाप किनारा करते रहे हैं, जिससे उन्हें धार्मिक मामलों में प्रगतिशील लोगों का भी समर्थन मिला.


प्रगतिशीलता का परिचायक 


अभी हाल में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री एवं चारा घोटाले में सजायाफ्ता लालू प्रसाद यादव ने भी मोदी पर उनकी मां के देहांत के बाद सर मुंडन न कराने जैसे दकियानूसी प्रथा को लेकर सवाल खड़े किए लेकिन मोदी ने लौटकर इस पर कोई सफाई नहीं देना उचित समझा जो नरेन्द्र मोदी के धार्मिक मामलों में प्रगतिशीलता का परिचायक है. इसके साथ ही तमाम मौकों पर अपने से कम उम्र के धार्मिक लोगों के पैर आदि न छूकर तथा धार्मिक अनुष्ठानों में पुरोहितों से ऊपर बेदी पर बैठकर मोदी लगातार क्रमिक धार्मिक सुधार तथा धर्म और राज्य के बीच राज्य की सर्वोच्चता के पक्ष में खड़े रहने के संकल्प को दोहराया है. 


त्यागी एवं दैवीय चरित्र


अंतिम और सातवां कारण “मोदी का त्यागी एवं दैवीय चरित्र” है. तमाम विपक्षी पार्टियों की तरह मोदी का परिवार में न उलझना तथा विभिन्न मौकों पर अद्भुत व अलौकिक वेशभूषा धारण करना नरेंद्र मोदी को बाकी अन्य नेताओं से अलग बनाता है और उनमें दैवीय सद्गुण का दर्शन कराता है, जिसका भारतीय जनमानस पर व्यापक असर पड़ता है. इन उक्त तमाम वजहों से मोदी को भाजपा का गांधी माना जा सकता है जिनके नेतृत्व में भाजपा पूरे देश में अमिट छाप छोड़ रही है और लगातार अजेय बनी हुई है.


नोट - इस आर्टिकल को अमित कुमार यादव व सुलेखा पाण्डेय ने लिखा है। यह लेखक के अपने विचार हैं। 

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