(एकदिनी आंतरिक साक्षात्कार कार्यक्रम में विषय-विशेषज्ञों ने विद्यार्थियों को सराहा, पीजीडीएफएच कोर्स को बताया हिंदी पत्रकारिता का पर्याय)
"पर्सनालिटी बिल्डप और स्किल्स डेवलपमेंट के साथ मीडिया प्रोफेशनल्स बनने का मौका पीजीडीएफएच कोर्स द्वारा संभव है। प्रयोजनमूलक हिंदी के सभी विद्यार्थियों ने अपने साक्षात्कार द्वारा कई सारे व्यावहारिक प्रश्नों के जवाब जिस कुशलता से दिए उससे इस पाठ्यक्रम की खूबियों को पहचाना जा सकता है। कमोबेश सभी बच्चों ने कहा कि वे इस कोर्स में ऐसा बहुत कुछ सीखे हैं या जान पाये हैं जो मीडिया प्रोफेशनल्स के लिए अनिवार्य शर्त है। सामाजिक-राजनीतिक दबाव के साथ मनोवैज्ञानिक रूप् से भी मीडिया प्रोफेशनल्स को कई सारे मोर्चे पर संघर्ष करना पड़ता है जो पत्रकारीय बहादुरी और निष्पक्ष पत्रकारिता के लिए जरूरी है। प्रयोजनमूलक हिंदी डिप्लोमा पाठ्यक्रम के विद्यार्थी अपनी पैनी निगाहों से पत्रकारिता की बारीकियों को समझ रहे हैं और चुनौतियों के बारे में भी लगातार जानने की कोशिश में जुटे हैं; यह देख अरुणाचल के मीडिया प्रोफेशनल्स में हिंदी के कुशल पत्रकारों की भावी पीढ़ी तैयार होते हुए देखा जा सकता है।"
यह सब बातें सुनते हुए हर्षित या कहें प्रसन्न होना स्वाभाविक है। विशेषकर जब मौका विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों के आंतरिक मूल्यांकन का हो और विषय-विशेषज्ञ किसी दूसरे विभाग से आये हुए अध्यापक हों, तो उनकी बातें और तारीफ निश्चित तौर पर मनोबल बढ़ाती हैं। शिक्षा संकाय की प्राध्यापिका डाॅ. अनामिका यादव ने प्रयोजनमूलक हिंदी डिप्लोमा के विद्यार्थियों का न सिर्फ साक्षात्कार लिया, अपितु उन्हें जरूरी सुझाव भी दिए जो आवश्यक जान पड़े। इस मौके पर अंग्रेजी विभाग के प्राध्यापक डाॅ. प्रचण्ड नारायण पिराजी भी मौजूद रहे जिन्होंने कहा कि-'यह आपके अध्यापक का फ्लोर टेस्ट है। यदि विद्यार्थी मीडिया का हो, तो उसके परफार्मेंस से उसके अध्यापक की टीआरपी तय होती है।'
हिंदी विभाग के शोधार्थी सुश्री प्रियंका सिंह और श्री विजय कुमार विषय-विशेषज्ञ के रूप में विद्यार्थियों से मुखातिब हुए और कई सारे जेनुइन सवाल किए। उन्होंने मीडिया शब्दावली की गहन और गंभीर समझ के अलावे यह भी खंगालने की कोशिश की कि एक मीडिया प्रोफेशनल्स विभिन्न चुनौतीपूर्ण स्थितियों में रिपोर्टिंग कैसे करता है या उसके द्वारा न्यूज़ कवरेज की अपने तईं तैयारी कैसी होती है।
प्रयोजनमूलक हिंदी डिप्लोमा पाठ्यक्रम के कार्डिनेटर डाॅ. राजीव रंजन प्रसाद ने कहा कि-'उपलब्ध संसाधन सीमित हैं, तब भी वे लगातार बेहतर आउटपुट देने के प्रयास में जुटे हैं; क्योंकि आज की महंगी होती पत्रकारिता या कि मीडिया कोर्सेज के लिए विद्यार्थी लाखों रुपए खर्च कर देते हैं। ऐसे में अरुणाचल के मीडिया विद्यार्थी के लिए सर्वसुलभ तरीके से मीडिया की जानकारी और पत्रकारिता की पढ़ाई को संभव बनाना; उन्हें प्रयोजनमूलक हिंदी के बरास्ते रोजगार की छत मुहैया कराना है जहाँ वह मीडिया प्रोफेशनल्स की भाँति अपना काम कुशलतापूर्वक और अपना काम पूर्ण जवाबदेह तरीके से कर सकें।'
इस मौके पर विद्यार्थियों के फीडबैक आमंत्रित किये गए जिनमें से अधिसंख्य का मानना था कि इस तरह के आंतरिक साक्षात्कार होने से वे खुद को जान पाते हैं और अपनी कमियों से दो-चार होने का मौका मिलता है। मीडिया प्रोफेशनल्स के बतौर जनता के बीच अपनी बातें स्पष्टता के साथ और सही तरीके से रखना होता है। इसके लिए निर्भीकता और आत्मविश्वास का होना बेहद जरूरी है जो इस तरह के आयोजन से हममें विकसित होता है और हम यह जान पाते हैं कि सवाल-जवाब के बीच अपनी बातें पुष्ट और उचित तरीके से कैसे रखना है और क्यों रखना है।