शिक्षा का मकसद डिग्रियों से युक्त सिर्फ फ़ाइल को तैयार करना नही होता है और भी बहुत कुछ होता है, बीएचयू को आनंद ने कैसे जिया, पढिये इस लेख में..! || Thematvala

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आलेख थोड़ा लम्बा है धर्य बनाते हुए पूरा पढ़िए..आप के अहसास व भाव को शब्दों में अभिव्यक्त करने का प्रयास किया हूँ..
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बीएचयू यह मेरे लिए महज एक शब्द नही रहा..मेरे जीवन के सुखद अनुभवों रूपी यह पुस्तक का जीवंत अध्याय बन चुका है तीन साल का आनंदमयी दौर एक-एक अध्याय से समाहित पुस्तक को शोभायमान कर रहा है।हिर्दय में सदैव स्मरणीय रहने वाला पल..आज यादों के संगम में डूबते हुए भावविभोर कर रहा है।

मधुर मनोहर अतीव सुंदर,यह सर्वविद्या की राजधानी..

बीएचयू कुलगीत की ये प्रारंभिक पंक्तियां मेरे जेहन में हमेशा यादों के झरोखों में याद रहेंगी।बीएचयू को शिक्षा की राजधानी है ऐसे ही नही कहा जाता है यहाँ वाकई में शिक्षा का स्थायीपना है पूरे एशिया में बीएचयू का एकमात्र विशाल परिसर है जहाँ सिंह द्वार स्थित बीएचयू के संस्थापक व भगवान और भारत रत्न महामना मालवीय जी का आशीर्वाद लेते हुए शिक्षा का सफर शुरू होता है।

ये सफर छितुपर गेट,सीर गेट,हैदराबाद गेट,नरिया गेट से होते हुए हमारे जिंदगी को शिक्षित करने के उद्देश्य से हमारे जीवन व्यहार में प्रवेश करते हुए..शेष जीवन में उत्पन किसी भी समस्याओं को चुनौतियो के रूप में गढ़ते हुए..हमे समस्याओं के समक्ष तटस्थ रहना सिखाते है महामना जी के आदर्श,प्रेरक विचार व उनका संघर्षशील जीवन।

शिक्षा का मकसद डिग्रीयो से युक्त सिर्फ फ़ाइल को तैयार करना नही होता है ये डिग्रीयो को प्राप्त करने के दौरान जो आपने संघर्ष किया है वही तो है शिक्षा का असल मकसद है।बीएचयू के लिए संघर्ष करना और बीएचयू में आकर जीवन जीने के लिए संघर्षों से गठबंधन करना ही बीएचयू में असल शिक्षा का मूल तत्व नज़र आता है।महापुरुषों की जीवनी व आदर्शों को अपने व्यहारो में आत्मसात करना ही शिक्षा का उद्देश्य है।

बीएचयू में विभिन्न महापुरुषों के नाम पर स्थापित चेयर है विश्वविद्यालय प्रशासन और चेयर के सहयोग से महापुरुषों के जयंती पर आयोजित संगोष्ठी हमे महापुरुषों के विचारों से प्रेरित होने के लिए आमंत्रित करते है।विभिन्न संकायो,संस्थानो और कॉलेजों का बीएचयू...एक अविरल धारा सी बहती हुई संगम है।जहाँ पर गँगा,जमुना और सरस्वती जी की तहजीब नज़र आती है।

बीएचयू के विभिन्न संकायों व संस्थानो द्वारा प्रतिवर्ष युवा महोत्सव जैसे कार्यक्रम आयोजित होते है विश्वविद्यालय स्तर पर स्पंदन कार्यक्रम का आयोजन होता है अपने संकाय और संस्थानों से आए हुए छात्र एवं छात्राएं अपने अभिनय व प्रस्तुति के जरिए  हिर्दय के गहराई तक को स्पंदित कर देते है।युवा महोत्सव आयोजन का उद्देश्य छात्रों में उनकी पढ़ाई के साथ साथ कला और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में उन्हें शामिल कर उनकी रचनात्मकता बढ़ाना होता है।

विश्वविद्यालय छात्रों को उनके सम्पूर्ण व्यक्तित्व विकास तथा उनके नजरिए में प्रतियोगिता की भावना विकसित करने के लिए पाठ्येतर गतिविधियों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करती है।पठन-पाठन क्रिया के साथ अपने अंदर छुपे हुए प्रतिभा को तलासने एवं तरासने का एक शानदार मंच मुहैया करता है..यही तो बीएचयू में पढ़ाई करने के फायदे है जहाँ शिक्षा की महत्वपूर्णता व ज्ञान के आलोक से हम परिचित होते है।

बीएचयू बनारस का दिल है और बीएचयू का दिल..

मधुबन है जहाँ प्रेमियों का संगम होता है तो कई कवियों की गोष्ठियों होती है..

वी.टी है जहाँ महादेव है,चाय है,समोसा है,मिठाई है,बकैती है,मस्ती है,बर्थडे सेलिब्रेशन है और भी बहुत कुछ ..यू कह ले की पूरे बीएचयू का केंद्र है..वी.टी यहाँ जो जीवंतता देखने को मिलती है वो कही नही है..

पी.एम.सी चौराहा है..एकमात्र बीएचयू का ऐसा चौराहा..जिसकी पहचान करने में मुझे दो वर्ष लग गए।बाहरवीं में मैथ्स साइड से होने के नाते पी.एम.सी का मतलब फिजिक्स,मैथ्स और केमिस्ट्री जानता था..बीएचयू में आके पता चला अब तक जो पढ़े थे वो थ्योरी थी...प्रैक्टिकली पता चला पी.एम.सी का मतलब पिया मिलन चौराहा है..

मैत्री जलपान गृह है जहाँ जलपान और खाने की उत्तम व्यवस्था है..यहाँ अकसर राहुल किसी अंजली का खाने का पेमेंट कर देता है..और अंजली को यह बात बिल्कुल पता नही चलती है..

सेंट्रल और साइबर लाइब्रेरी है जिसके आगे वो हरी-हरी मखमली सी घास है जहाँ सेमस्टर परीक्षा की तैयारी करते हुए अजय अपने दोस्त प्रिया को पढ़ाता है और पढ़ने-पढ़ाने में इन दोनों के आँखों में प्रेम के गुलाब खिलने लगते है..

एग्रीकल्चर फार्म है जहाँ फ़ोटो प्रेमी डीएसलार लेकर नज़र आते है तो वही प्यार की दहलीज पर खड़ा जोड़ा(प्रेमी एवं प्रेमिका) एकांत की तलाश में यहाँ नज़र आते है..

लंबे चौड़े खेल के मैदान है जहाँ किसी भी प्रकार का मौसम रहे हर समय क्रिकेट खेलते
लोग मिल जाएंगे..छुटियों के दिनों में ग्राउंड के बाहर खड़ी बाइक की लंबी कतारे प्रत्यक्ष प्रमाण है की आज का मैच टक्कर व रोमांच से पूर्ण होने वाला है..

सर सुंदर लाल अस्तपाल है हम बीएचयू के छात्रों के लिए विशेष रूप से स्टूडेंट हेल्थ सेन्टर है जहाँ हमे हल्की सी भी स्वास्थ संबंधित परेशानी हो हेल्थ कार्ड लिए हम पहुँच जाते है और सुंदर लाल अस्पताल में हम बीएचयू के छात्रों का अलग ही भौकाल है..कई रिश्तेदारो व जान पहचान वालो के ओपीडी में पर्ची लगाने के लिए सुबह उठते फिर क्लास जाया करते थे..

एक किस्सा मुझे याद आ जाता है..एक बुजुर्ग दादाजी ओपीडी में पर्ची लगाने के लिए काफी परेशान थे..पैर में परेशानी और भीड़ होने के वजह से लाइन में खड़े नही हो पा रहे थे..तभी मुझसे उनका दर्द देखा नही गया..और मैंने उनका पर्ची ओपीडी में लगाया..दादाजी की आँखों में आँसु आ गए..पूछने पर उन्होंने बताया बच्ची तीन दिन से पर्ची लगावे ख़ातिर परेशान हई..बुजुर्ग हूँ..इतनी भीड़ है..ऊपर से जोड़ों का असहनीय दर्द..लाइन में खड़ा होये क पौरुख़ नाही हवे..बातों ही बातों में दादाजी अपने कुर्ता के बाए तरफ के पैकेट से 20 रुपये का नोट निकालर..मेरे तरफ बढ़ाते हुए बोले..ला बच्चवा हम इतने दे सकीला..अरे दादाजी हम बीएचयू के छात्र हई,महामना के पुत्र है..तोहार मदद करना त हमार फर्ज हवे..इसकी कोई जरूरत नही है..क्योंकि हमारे भगवान मालवीय जी कहते है..
"मुझे पृथ्वी का समृद्ध राज्य नहीं चाहिए,और मोछ भी नही चाहिए।मेरी तो यही उत्कट कामना है कि दुःखो से तपाये हुए प्राणियों का कष्ट दूर करूँ।"
मैं तो उनका पुत्र हूँ..मालवीय जी के आदर्शों को अपने व्यहारो में शामिल करने का प्रयास किया हूँ..आप मुझे 20 रुपये के बजाय आशीर्वाद दीजिए..ताकि जल्द ही हमार सुंदर लड़की से शादी हो जाए..

महलों जैसा डिपार्टमेंट है और गुफाओं जैसा प्रोफेसर का चैम्बर है..डिपार्टमेंट में प्रोफेसर के चैम्बर के तलाश में पहली बार आने वाला लड़का डिपार्टमेंट के भुल भुलाइये में भटक जाता है तभी एक सुंदर सी लड़की सुरीली आवाज में उस लड़के को चैम्बर का रास्ता बताते हुए कहती है सीधे जाकर बाए घूम जाना..तीसरे नंबर का चैम्बर सर जी का है..
लड़की की यादों में खोया हुआ लड़का आगे बढ़ता..अब वो इतना खो चुका है की चैम्बर का रास्ता ही भूल गया..और लडक़ी के प्रेम में आज तक भुले भटक रहा है...

कन्याओं के गालो सी मुलायम लंबी-लंबी सड़के है सड़को के दोनो तरफ लड़कियों के घने और सुंदर बालों सी पेड़ो की पत्तिया व टहनिया हल्के-हल्के हवा में खूबसूरती से झुम उठती है..
उफ्फ.. इतने मनोहर दृश्य..हमरा तो दिल ही लूट लेते है ये सभी खूबियाँ बीएचयू को सुंदरता प्रदान करते है परिसर को पूरी तरह से हरा भरा बनाते है अगर बारीश का मौसम हो तो..पूरा बीएचयू स्वर्ग में तब्दील हो जाता है।

बीएचयू का लंका गेट अपने जाम और शानदार चाय के लिए फेमस है अगर आप हॉस्टलर्स है चाय प्रेमी है तो जरूर आपको ये चाय की तलब लंका की ओर खीच लाती होगी..कुछ को तो सिगरेट की तलब ही रवानगी बढ़ा देती है...इसे ही तो कहते है इश्क़ में लंका होना..कुछ दूर ही आगे बढ़ने पर बनारस का मसहूर घाट अस्सी के भव्य नज़ारे के दर्शन होते है..एक सुकून की तलाश में हमे यहा खीच लाता है।

गँगा के तट पर बसा अस्सी घाट उस पार उड़ती हुई रेते..खुले आसमान में बहती मद्धम-मद्धम सी सुंदर व शीतल हवा शाम और गँगा आरती को बेहद खूबसूरत बनाती है।अस्सी की सुबह-ए-बनारस व हल्के-हल्के बादलो को चीरता हुआ सूर्य हमारे चेहरे के ललाट को प्रकाशमय करते हुए सूर्य मानो कहना चाहता हो..मेरे तरह निखरना है तो तपना भी पड़ेगा।

वो जुलाई का बारीश वाला मौसम और हल्के-हल्के शीतल हवा बहती हुई नव प्रेवशीयो के दिलो और दिमाग में बीएचयू में ही स्वर्ग का नज़ारा दिख जाता है कॉउंसलिंग टाइम में अभ्यर्थियों के साथ आये हुए अभिवावक भी बारीश में भीगने का आनंद ले लेते है।

एक दिन वो आता है जब हमेशा हरा-भरा रहना वाला परिसर वीरान और सुना-सुना सा हो जाता है आज चिड़ियों की चहचहाट को सुनने वाले उसके साथी..अपने घर के तरफ रुख़ कर दिए है,आज ठंडी हवाएं किसी को आलिंगन में नही भर पा रही है,आज पेड़ की छाव में न तो बकैती और न ही राजनीतिक तर्क-वितर्क करते हुए छात्र-छात्राएं नज़र आ रहे है,सेंट्रल और साइबर लाइब्रेरी में सीट के लिए जंग होती नही दिख रही है,वी.टी पर दोस्तों की टोली नज़र नही आ रही है जो हर वक़्त एक दूसरे का टांगे खीचा करते थे मज़ाक उड़ाया करते थे और तो और खुद भी मज़ाक बन जाया करते थे,कमीने दोस्तो का समूह नज़र नही आ रहा है जो चाय तो पीते ऐसे पीते है जैसे मोदीजी ने बनाया हो..पैसे देने के समय में विजय माल्या हो जाते है,अब कोई कुंदन किसी स्नेहा को कोल्ड कॉफी पिलाता हुआ नज़र नही आ रहा है..क्योंकि ये सभी इस खूबसूरत दुनिया को छोड़ नए दुनिया के तरफ रुख कर दिए है..यही तो बीएचयू की जीवंतता है।

ऊपर की अंकित सभी प्यारी घटनाएं यादों का स्वरूप लिए फिर चलायमान होंगी...बस किरदार बदल जायेंगे..नए चेहरे के हाथों द्वारा कार्यक्रम का पुनः आगाज होगा..ये यूँही ही चलता रहेगा..बीएचयू का तो रिवाज़ ही यही है।

बीएचयू में यहाँ के छात्र,छात्राएं उन पंछियों के समान है जो अपने सपने को पूरा करने के लिए नए घोंसले की तलाश में उड़ गए है इनकी चहचहाट कैंपस की सुंदरता बढ़ाया करती है लेकिन अब वे जीवन संघर्षों के नए अध्याय लिखने के लिए अपने पँखो के हौसले को नई उड़ान दे रहे है..तो वही अपने कड़ी मेहनत से नव प्रवेशी महामना के बगिया में आकर फूल बनने को बेताब है इनकी टिमटिमाती आँखों में हौसले से पूर्ण उड़ानों की बहती हवा नज़र आती है।

बीएचयू एक अलग ही दुनिया है यहाँ पर आकर सहपाठियों से,हॉस्टल के मेस महाराज से,कैंटीन में काम करते हुये छोटू से,प्रोक्टोरियल बोर्ड के चाचा से,हॉस्टल के कर्मचारियों से अपनापन सा हो गया है कभी-कभी लगता है ये सफ़र तीन सालों का न होकर कई वर्षों से चला आ रहा हो... बीएचयू से जुड़ी हर चीज़ ने हमारे जेहन के हिर्दय में खूबसूरत यादे बना लिया है यह लम्हे सदैव स्मरणीय रहेंगे।

बीएचयू की लम्बी-लम्बी सड़के हमे सिखाते है जीवन स्मूथ हो या पत्थरीले..निरंतर चलते रहना,यहाँ की बड़ी सी बड़ी इमारते हमे बड़ा सोचने के लिए प्रेरित करती है जिस सोच से हमारे देश व समाज का कल्याण हो,हरे भरे पेड़ हमे सिखाते है जीवन के संघर्षों में कभी मुरझाना नही।

अब तक के मेरे जीवन में अगर कुछ गौरवान्वित करने वाला है तो का यहाँ का छात्र होना..आज जो भी थोड़ा बहुत लिख,बोल पा रहा हूँ ख़ुद को प्रस्तुत कर पा रहा हूँ थोड़ा सम्मान देने और सम्मान प्राप्त करने की कला बीएचयू में ही सीख पाया हूँ..बीएचयू ने ही सिखाया..संघर्ष ही सच्चे साथी है..मुश्किल से मुश्किल परिस्थितियों में हार न मनाने की कला का हुनर हमने तो यही से सीखा है।पहले वर्ष से छात्र राजनीति से जुड़ते हुए..युवा महोत्सव में हिस्सेदारी देते हुए..अंतिम वर्ष तक विभिन्न समाजिक सरोकार के मुहिम से गुजरते हुए..जीवन के सत्यता को परखते हुए..समाजिकता को थोड़ा बहुत समझ पाया हूँ।

कहते है समय बड़ा बलवान होता है..आज समय के आगे मैं पराजित हो गया हूँ समय  चक्र ही ऐसा है की आप रुक सकते है लेकिन समय नही..वो गतिमान है।आज बीएचयू से और ब्रोचा हॉस्टल से बिछड़ने का दिन आ गया है..विदा लेने का दिन आ गया है..एक ऐसा पल..जहाँ इन आँखों में घर जाने की खुशी है तो दूसरे तरफ बीएचयू से बिछड़ने का दर्द है,दुःख है..दर्द से निकलता हुआ आँसु आँखों में जम सा गया है।

खैर जीवन की सत्यता यही है यहाँ कुछ स्थायी नही है सब गतिमान है जो आया है उसे जाना होगा..ताकि नए को मौका मिल सके हुनरमंद होने का,जीवन की उन तमाम विविध कलाओ व संघर्ष को करीब से महसूस करने का।

हम यादों की कई परते लिए बीएचयू से विदा ले रहे है दिमाग में यादों को फ़िल्म का स्वरूप देकर समाहित किए जा रहे है आँखे नम है भावुक हूँ..बीएचयू से टूटता हुआ कलेजा..दर्द दे रहा है जिसे न तो दिखाया जा सकता न ही बताया जा सकता है लेकिन मैं रो नही सकता.. क्योंकि इन्हीं आँखों में कुछ स्वप्न लिए जीवन के आगामी सफ़र के तरफ बढ़ना है.. जीवन की यात्राये अनंत और अज्ञात है..जीवन का हर मोड़ एक नई रोमांच पैदा कर जाता है..अगर मंजिले एक हो तो खिलाड़ी रास्ते पर ही मिलते है..क्या पता हम में से किसी की मुलाकात किसी राह पर हो जाए..वाह तब की क्या बात हो जाए।

मेरा सदैव प्रयास रहता है अपने नाम को मूलतः अर्थ को सामने वाले के चेहरे पर साकार कर सकू..इंसान हूँ भगवान तो हूँ नही.. इस सफर के दौरान अगर किसी के भावनाओं को जाने अनजाने में आहत किया हूँ तो दिल बड़ा करके माफ कर दीजिए।आप सभी को उज्जवल भविष्य की शुभकामनाएं..जीवन के हर मुश्किलों को कबार फेंकिए..लंका गेट पर फहराता पीले ध्वज के तरह सफलता को झंडा आप लोग लहराते रहिए।

आज हम बीएचयू के लिए अंजान हो गए है यहाँ की हवाये हमारे जेहन में सदैव के लिए कैद सी हो गयी है हॉस्टल रूम के बन्द ताले लाचार होकर हमे देखते है पेड़ हिल-हिल कर अलविदा कहते है कंधो पर बैग से ज्यादा जिम्मेदारियों का भार है आँखों में नई मंज़िल की तलाश के लिए कदम..खुद ब खुद लंका गेट की ओर चल पड़ते है और जुबान पर एक गाना होता है...

"जिंदगी एक सफ़र है सुहाना..यहाँ कल क्या हो किसने जाना"
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 लेखक - आनन्द कुमार (पूर्व छात्र)
विज्ञान संस्थान,बीएचयू
वाराणसी,उत्तर प्रदेश
2016-2019 बैच

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