जानिए छठ पूजा के पीछे का : श्रद्धा, विज्ञान और प्रकृति का संगम

Sachin Yadav
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छठ पूजा भारतीय संस्कृति का एक अत्यंत प्राचीन और वैज्ञानिक पर्व है। यह पर्व सूर्य देव और छठी मइया (उषा या प्रकृति देवी) की उपासना के रूप में मनाया जाता है। आइए इसके इतिहास, वैज्ञानिक कारण, और अंधविश्वास से जुड़े पहलुओं को विस्तार से समझते हैं 👇

🌞 1. छठ पूजा का इतिहास

छठ पूजा की परंपरा वैदिक काल से मानी जाती है।

ऋग्वेद में सूर्य उपासना के कई मंत्र मिलते हैं, जिनमें "सूर्य नमस्कार" और "अर्घ्य" का उल्लेख है।


ऐसा माना जाता है कि महाभारत काल में कुंती पुत्र कर्ण सूर्य की उपासना किया करते थे, जिससे उन्हें कवच-कुंडल और अपार शक्ति प्राप्त हुई।


रामायण काल में भी, जब श्रीराम और माता सीता अयोध्या लौटे, तो सीता ने कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सूर्य की पूजा की थी — यही परंपरा छठ पूजा के रूप में प्रसिद्ध हुई।


🔬 2. छठ पूजा का वैज्ञानिक कारण

छठ पूजा केवल धार्मिक नहीं, बल्कि वैज्ञानिक और प्राकृतिक संतुलन से जुड़ा हुआ पर्व है।

(1) सूर्य ऊर्जा और स्वास्थ्य संबंध

सूर्य विटामिन D का सबसे बड़ा स्रोत है।


सूर्य की प्रातः और सायंकालीन किरणें शरीर में प्रतिरक्षा शक्ति बढ़ाती हैं, त्वचा की बीमारियों को कम करती हैं, और मानसिक शांति देती हैं।


छठ पूजा में उपासक सूर्य की किरणों को सीधा शरीर और नेत्रों से ग्रहण करते हैं, जिससे शरीर का डिटॉक्सिफिकेशन (शुद्धिकरण) होता है।


(2) उपवास का वैज्ञानिक महत्व

छठ के व्रत में 3–4 दिन तक नियंत्रित उपवास और जल का सीमित सेवन होता है।


इससे शरीर की पाचन प्रणाली, लिवर, और त्वचा को विश्राम मिलता है।


यह इंटरमिटेंट फास्टिंग जैसा होता है, जो आधुनिक विज्ञान में भी अत्यंत लाभकारी माना गया है।


(3) प्रकृति संतुलन और पर्यावरण चेतना

यह पूजा जल (नदी), भूमि (मिट्टी), अग्नि (सूर्य), वायु और आकाश — इन पंचतत्वों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करती है।


छठ के दौरान प्लास्टिक का उपयोग वर्जित होता है और पूजा पूरी तरह प्राकृतिक सामग्रियों (बाँस की टोकरी, मिट्टी के दीये, फल आदि) से की जाती है।
इससे पर्यावरण संरक्षण का संदेश मिलता है।


(4) मानसिक शुद्धि और एकाग्रता

व्रतधारी आत्मसंयम, ध्यान और शुद्ध आचरण रखते हैं।


वैज्ञानिक रूप से यह न्यूरोलॉजिकल बैलेंस और डोपामिन नियंत्रण में मदद करता है, जिससे मानसिक शांति और सकारात्मकता बढ़ती है।


🕉️ 3. छठ पूजा और अध्यात्म

सूर्य को प्रत्यक्ष देवता कहा गया है, जो हर जीव को ऊर्जा प्रदान करते हैं।


छठ में उषा (भोर की देवी) और प्रत्यूषा (संध्या की देवी) की भी पूजा होती है — यह जीवन के आरंभ और अंत के प्रतीक हैं।


यह पर्व हमें बताता है कि जीवन में संतुलन, संयम और कृतज्ञता ही सुख का स्रोत है।


⚠️ 4. अंधविश्वास और वास्तविकता

कुछ लोग छठ पूजा से जुड़ी मान्यताओं को अंधविश्वास से जोड़ देते हैं, लेकिन वास्तविकता यह है कि:

इसमें किसी पशु बलि, तंत्र-मंत्र या डराने वाले कर्मकांड का स्थान नहीं है।


पूजा के सारे कार्य स्वच्छता, आत्मसंयम और सूर्योपासना पर आधारित हैं।


छठ में मुख्य जोर प्राकृतिक शुद्धता, आध्यात्मिक ध्यान, और सामाजिक समानता पर दिया गया है।
(इस दिन जाति, धर्म, वर्ग का भेद मिटाकर सभी एक घाट पर पूजा करते हैं।)


🌅 निष्कर्ष

छठ पूजा कोई मात्र धार्मिक रस्म नहीं है, बल्कि यह एक वैज्ञानिक, पर्यावरणीय और सामाजिक उत्सव है।
यह हमें सिखाती है कि –

“जब मन, शरीर और प्रकृति में सामंजस्य होता है, तभी सच्ची ऊर्जा और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।”

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