— भीम आर्मी के समर्थन में उतरे युवाओं पर एकतरफा कार्रवाई का आरोप, 12 गांवों में गिरफ्तारियां
प्रयागराज के करछना क्षेत्र में बीते कुछ दिनों से माहौल तनावपूर्ण बना हुआ है। भीम आर्मी प्रमुख और सांसद चंद्रशेखर आजाद के दौरे से पहले हुई पुलिस कार्रवाई और उसके बाद उनके बयान ने दलित समाज को और भी नाराज़ कर दिया है। गांव वालों का आरोप है कि सांसद नेतागिरी कर के चले गए, लेकिन उनके समर्थक बिना वजह जेल भेज दिए गए।
पूरा विवाद 29 जून से शुरू हुआ, जब सांसद चंद्रशेखर को करछना के ईसौटा गांव में दलित युवक देवी शंकर के परिवार से मिलना था। देवी शंकर की अप्रैल में गांव के ही कुछ ठाकुरों ने कथित तौर पर हत्या कर दी थी और लाश को पेट्रोल डालकर जला दिया था। लेकिन चंद्रशेखर को पुलिस ने झांसी सर्किट हाउस में ही हाउस अरेस्ट कर दिया और वे गांव नहीं पहुंच सके।
इस बीच, भीम आर्मी के समर्थकों ने विरोध में भदेवरा चौराहे पर चक्का जाम कर दिया और पुलिस पर पथराव करते हुए कई वाहनों को आग के हवाले कर दिया। इसके बाद पुलिस ने कार्रवाई करते हुए 75 लोगों को जेल भेज दिया।
लेकिन अब स्थानीय लोगों और पीड़ित परिवारों का आरोप है कि पुलिस ने निर्दोष युवकों को भी उठा लिया, जो उस दिन मौके पर मौजूद ही नहीं थे। करछना के अकोढ़ा गांव की मीना देवी बताती हैं, “मेरा भतीजा विकास उस दिन दूसरे गांव रिश्तेदारी में बहन की शादी की तैयारी में गया था, लेकिन पुलिस ने उसे भी उपद्रवी बता कर गिरफ्तार कर लिया।”
ऐसी ही तस्वीर आसपास के कुलमई, ककरम, कैथी, कौवा जैसे कुल 12 गांवों से सामने आई है, जहां घर से युवकों को घसीटकर उठाया गया। परिजनों का आरोप है कि पुलिस ने बिना जांच के सिर्फ शक के आधार पर गिरफ्तारियां कीं। वहीं, पुलिस का कहना है कि सिर्फ उन्हीं पर कार्रवाई हुई है जो वीडियो या फोटो में साफ तौर पर दिखाई दे रहे थे।
सबसे बड़ी नाराजगी का कारण सांसद चंद्रशेखर का वह बयान है, जिसमें उन्होंने कहा कि उपद्रव करने वाले उनकी पार्टी के नहीं थे। अकोढ़ा गांव के बुजुर्ग कहते हैं, “अगर वो हमारे नहीं थे तो फिर हमारे ही बच्चे क्यों जेल में हैं? ये तो हमारे साथ विश्वासघात है।”
अब सवाल यह है कि क्या दलितों की आवाज़ उठाने वाले नेताओं को सिर्फ मंच चाहिए या वे वाकई अपने समाज के साथ हैं? जवाबदारी तय होनी चाहिए, वरना भरोसे की दीवारें ऐसे ही गिरती रहेंगी।