स्वतंत्रता की अलख जगाने वाला है बेनीपुरी का साहित्य - प्रो. श्रीप्रकाश सिंह

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भारतीय समाजवाद ने अन्तिम व्यक्ति को अपना लक्ष्य मानते हुए शुरू से ही अहिंसा के मार्ग पर चलकर समाज के उत्थान की बात करता है। यह बातें दक्षिण परिसर, के निदेशक प्रो. श्रीप्रकाश सिंह ने दिल्ली विश्वविद्यालय के कला संकाय के सभागार में आयोजित डॉ० अजीत कुमार पुरी जी की नव्य प्रकाशित पुस्तक 'स्वाधीनता संग्राम, समाजवाद और श्रीरामवृक्ष बेनीपुरी' के लोकार्पण के अवसर पर कही।


कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रो० श्रीप्रकाश सिंह ने कहा कि श्रीरामवृक्ष बेनीपुरी ने अपने जीवन ही नहीं बल्कि अपने साहित्य में भी संबंधों को महत्व दिया है, जो कि आज के समाज में अधिक प्रासंगिक है।उन्होंने ऐसी पुस्तकों और उनके लोकार्पण को संस्कार सृजन की शाला के समान बताया। जो राष्ट्रीय भावना को प्रेरित करती है।


अपना मुख्य वक्तव्य देते हुए श्री अनंत विजय ने भारतीय समाजवाद के वैशिष्ट्य पर प्रकाश डाला और उसे भारतीय परिस्थितियों की उपज बताया। उन्होंने बेनीपुरी को ऋषि साहित्यकार बताते हुए उनकी राजनीतिक प्रतिबद्धता और पत्रकारिता को राष्ट्र के उत्थान में सहायक माना।


प्रो० कुमुद शर्मा ने इस पुस्तक को साहित्य जगत की महती उपलब्धि के रूप में रेखांकित किया। उन्होंने ने इस पुस्तक को अत्यंत श्रम - साध्य बताते हुए कहा कि गद्य की शायद ही कोई विधा होगी जिसपर बेनीपुरी जी ने कलम नहीं चलाई।

प्रो .अनिल राय ने कहा कि बेनीपुरी जी पर बहुत कम पुस्तकें उपलब्ध हैं। इस रुप में यह पुस्तक मील का पत्थर साबित होगी। पुस्तक की भाषा की सराहना करते हुए उन्होंने इसकी भाषा को प्रांजल बताते हुए उसे पानी के सहज प्रवाह के समान बताया।


इस कार्यक्रम में अपना सानिध्य प्रदान करते हुए बेनीपुरी जी की पुत्रवधु श्रीमती शीला बेनीपुरी जी ने पुस्तक के लेखक को अपना आशीर्वचन दिया और बेनीपुरी परिवार में अपने होने पर गौरव अनुभव किया। उन्होंने अपने संस्मरण सुनाते हुए बेनीपुरी साहित्य को वर्तमान समय के लिए महत्वपूर्ण बताया।


लेखकीय वक्तव्य देते हुए डॉ० अजीत कुमार पुरी जी ने कहा कि बेनीपुरी जी ने साहित्य लेखन की प्रेरणा मानस से लेकर उसे देश और समाज की सेवा में जोड़ा। इस दृष्टि से बेनीपुरी साहित्य का स्थाई महत्व है।


कार्यक्रम का संचालन डॉ. ऋषिकेश सिंह ने किया और धन्यवाद ज्ञापन डॉ. सुनील कुमार वर्मा ने किया। इस अवसर पर दिल्ली विश्वविद्यालय के विभिन्न महाविद्यालयों के शिक्षक, शोधार्थी और छात्र बहुत बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।

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