जीवन और मृत्यु के
चक्र में फँसें हम सब
भटक रहे हैं यहाँ से वहाँ
अपनी-अपनी इच्छाओं और लालसाओं का
जनाजा उठाये...
मद, लोभ, क्रोध, अंहकार और
स्वार्थ की ज्वालाओं में जलते
कभी धुँआ बन
आसमान को भी कर आते हैं काला
तो कभी निःस्वार्थ प्रेम के बादलों से टकरा
हो जाते हैं कपूर से पावन
बेजान जिस्म और खोखली-सी हँसी लिये
हिल-डुल रहे हैं उस बिजूके की तरह
जो डरा तो सकता है
अपने आस-पास उड़ती चिड़ियों को
पर नहीं सुन सकता
अपनी आत्मा की आवाज...।
कवयित्री: मालिनी गौतम
संग्रह: एक नदी जामुनी-सी
प्रकाशक: बोधि प्रकाशन, जयपुर
- रोहित कौशिक के फेसबुक वॉल से..