मधुबन पर पड़ेगा नफ़रत का साया, वीसी ने क्या यही जगह पाया ।

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उसके चुम्बन की स्पष्ट परछाइयाँ मुहर बनकर उसके तलुओं के ठप्पे से मेरे मुह को कुचल चुकी हैं, उसका सीना मुझको पीसकर बराबर कर चुका है !
मुझको प्यास के पहाड़ों पर लिटा दो जहाँ मैं एक झरने की तरह तड़प रहा हूँ ! मुझको सूरज की किरणों में जलने दो - ताकि उसकी आंच और लपट में तुम फौव्वारों की तरह नाचो !

मुझको मधुबन के फूलों की तरह ओस से टपकने दो ताकि उनकी दबी हुई खुश्बू से अपने पलकों की उनिन्दी जलन को तुम भिगा सको, मुमकिन है तो..!

हां, तुम मुझसे बोलो, जैसे मेरे दरवाजे की शर्माती चूलें सवाल करती हैं बार - बार .... मेरे दिल के अनगिनत कमरों से..!
हाँ, तुम मुझसे प्रेम करो जैसे मछलियाँ लहरों से करती हैं ..! जिनमें वो फंसने नहीं आती जैसे हवाएं मेरे सीने से करती हैं जिसको गहरे तक दबा नहीं पाती तुम मुझसे प्रेम करो जैसे मैं तुमसे करता हूं।

जी नहीं अब ऐसा होना संभव नहीं है, को प्रेमी अपने प्रेमिका के जुल्फों में अंगुलियों को बिखेरते हुए प्रेम में डूब नही सकता भावविभोर नहीं हो सकता है ! क्योंकि प्रेमजोन घोषित बीएचयू का मधुबन अब वीसी के आदेश पर धरना प्रदर्शन जोन में तब्दील हो जाएगा ।
बीएचयू के कुलपति राकेश भटनागर ने छात्रों को लंका सिंहद्वार पर धरना प्रदर्शन करने पर रोक लगा दी है, साथ ही यह भी कहा है कि कैंपस में किसी अन्य जगह विरोध प्रदर्शन करने वाले छात्रों पर  कड़ी कार्यवाही की जाएगी । वीसी ने धरना स्थल के रूप में मधुबन को चुना है ।  भई क्या मधुबन का निर्माण धरना प्रदर्शन के लिए ही हुआ था।  यह काम पूरी तरह फ़ासीवादी विचारधारा के अनुरूप है, बजरंग दल और हिन्दू वाहिनी भी यही काम करती है लेकिन वीसी साहब ने अपने पद की गरिमा को ध्यान में रखते हुए विज्ञप्ति के माध्यम से यह फरमान सुनाया है ।


काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना के दौरान परिसर में छात्रों के लिए कैंटीन, पार्क आदि की जरुरतों के अनुसार तमाम सुविधाएं उपलब्ध कराई गई थीं और 1977 में मधुबन पार्क की भी स्थापना की गई थी । जहां छात्रों के बीच प्रेम पनपता हो आज जब तनाव भरी जिंदगी में कुछ सुकून के पल बिताने के लिए जगह की तलाश करना दूभर हो जाता है, उसी दौरान मधुबन पार्क को धरनास्थल घोषित करना प्रेम के खिलाफ तुगलकी फरमान ही न है।


बीएचयू के पूर्व छात्रनेता चंचल 2014 में अपने फेसबुक वॉल पर लिखते हैं
 "सन 1977 में जब हम इसका निर्माण करा रहे थे, तो हाफ पैंट ने इसका विरोध किया था- यह चरित्र बिगाड़ने के लिए बनाया जा रहा है। यहां आकर लोग मोहब्बत करेंगे, आदि-आदि। हमने उसका जवाब दिया था, तब जवानी के दिन थे। आज मधुबन को प्यार में डूबे देखा, तो अच्छा लगा। कम-से-कम ये लोग नफरत से तो दूर हैं। बनारस छोड़ने से पहले एक बार कुलपति लालजी सिंह से जरूर मिलूंगा। मधुबन में जंक फूड बंद कराकर उन्होंने अच्छा काम किया है। यहां तो आम का पना, बेल का शरबत, सिकंजी, सत्तू का घोल और माठा जैसे वाजिब पेय बिकने चाहिए, वह भी मिट्टी के बर्तन में।
बीएचयू सामाजिक सरोकार से जुड़ी संस्था रही है। 1916 में बापू ने इस विश्वविद्यालय की नींव में अपनी बोल में एक पत्थर रखा है। उसे बुकलेट के रूप में वितरित करना चाहिए। केंद्रीय पुस्तकालय के मुख्य द्वार पर संगमरमर की एक किताब रखी हुई थी, जिस पर लिखा था- साकी के मोहब्बत में दिल साफ हुआ इतना कि/ सिर को झुकाता हूं तो शीशा नजर आता है। हमारे बाद छात्र संघ पर एक हाफ पैंट वाला आया और उसने वह किताब हटवा दी, क्योंकि उसमे ‘मोहब्बत’ लिखा था।"

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