बीएचयू में हिंदी में साक्षात्कार को लेकर प्रोफेसर ने कही ये बड़ी बात..!

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हिंदी में इंटरव्यू देने से पता चला कि इंटरव्यू लेने वालों से ज्यादा ज्ञान मुझ में है - स्वर्ण सुमन

बात 2007 की है जब मैं दिल्ली आईआईएमसी का इंटरव्यू देने गया था। इंटरव्यू कक्ष में घुसते ही मेरा इंट्रोडक्शन पूछा गया। जैसे मैंने बोलना शुरू किया वैसे ही रेडियो एंड टेलीविजन के एचओडी प्रोफेसर राधवाचारी ने तपाक से बोला रुकिए रुकिए आप हिंदी माध्यम के हैं। मुझे हिंदी समझ में नहीं आती। ये लोग आपका इंटरव्यू लेंगे। ऐसा कहते ही वो उठ कर चले गए। मुझे बहुत अपमानित महसूस हुआ फिर भी मैंने अपने आपको संभाला और सारे प्रश्नों के जवाब दिए। इंटरव्यू कक्ष से बाहर निकलते ही मुझे रिजल्ट पता चल गया था कि मेरा नहीं होगा। 

फिर बात 2013 की है जब मैं जेएनयू में मीडिया स्टडीज में पीएचडी का इंटरव्यू देने गया। इतिहास के प्रोफेसर दीपक कुमार एचओडी थे। दीपक कुमार ने भी वही काम किया जो आईआईएमसी के राघवाचारी ने किया था। हिंदी नहीं आने की बात कहकर वो उठकर चले गए और फिर इंटरव्यू खत्म होने पर आये। मजेदार बात यह है कि मैं पूरे इंटरव्यू के दौरान इनलोगों को यह समझाता रहा कि सोशल मीडिया संचार का एक तकनीकी माध्यम है और वो मुझे ये बताते रहे कि सोशल मीडिया ग्रामीण इलाके में समूह संचार को कहते हैं।

इन दो घटनाओं में खास बात ये है कि जो लोग इंटरव्यू ले रहे थे वो हिंदी में ये बात कह रहे थे कि उन्हें हिंदी नहीं आती है। इसके बाद मैंने अच्छी तरह समझ लिया कि अगर मुझे सफलता हासिल करनी है तो पहले मुझे उन 1 प्रतिशत लोगों को खुश करना होगा जो अंग्रेजी का इंट्री पास लिए हुए हैं। फिर मैंने आगे का इंटरव्यू अंग्रेजी में ही दिया। लेकिन ऐसे लोगों को पहचान लीजिए जो सेमिनारों और गोष्ठियों में मंचों से शिक्षा की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं और सोच से कितने सामंतवादी हैं। ऐसे लोग जहां किसी भी सेमिनार-गोष्ठी में मिले तो उन्हें जरूर कहिए कि आपने अपनी सोच से न जाने कितने प्रतिभाओं की हत्या की है। आप हत्यारे हैं उन सारे ग्रामीण पृष्ठभूमि से आने वाले प्रतिभाओं के जो मेहनती होते हैं। आप हत्यारे हैं उन गरीब छात्रों के जिन्होंने आर्थिक अभाव के कारण हिंदी माध्यम में शिक्षा प्राप्त की। आप हत्यारे हैं शिक्षा व्यवस्था के जिन्होंने एक विशेष भाषा के शिक्षा को आगे बढ़ाया और दूसरे को दुत्कार दिया।

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