साहित्य अध्ययन में हमें रूप से शुरू होकर अंतर्वस्तु, भाषिक संरचना और विचारधारा की यात्रा करनी चाहिए।
हिंदी का पाठ अध्ययन औपनिवेशिक ज्ञान रूप से इतना बोधग्रस्त है कि ज्यादातर आलोचना पश्चिमी ज्ञान निर्मिति की पैरोडी है,स्थूल समाजशास्त्रीय है,संदर्भ केंद्रित है और पाठ के आत्म और मूल से भटकी हुई है।हिंदी के चंद आलोचक पाठ की आत्मा के सटीक विश्लेषक हैं।
*पाठ के दो तरह के पाठक होते हैं-सामान्य और विशेष।
अकादेमिक दुनिया के पाठक(शिक्षक,छात्र,शोधार्थी) से विशिष्ट पाठालोचन की उम्मीद की जाती है।आजकल इस क्षेत्र का पाठ अध्ययन भी विश्वविद्यालयी शिक्षण पैटर्न की तरह सामान्य,सरलीकृत और उथला हो गया है।
*पाठ में हमेशा दो स्तरों पर अर्थ विन्यस्त होते हैं-सतही अर्थबोध का स्तर,गहन अर्थबोध का स्तर।पाठ के विशेष अध्येता से गहन अर्थबोध की मांग होती है।
*आनंद और ज्ञान साहित्य का मूल उद्देश्य है। इसलिए इनकी गहन प्यास की तृप्ति गहन अर्थबोध से सम्भव होती है।
आलोचना गहन अर्थबोध की गतिशील सौंदर्य प्रणाली है।
* नया मानस आनंद और ज्ञान के पारंपरिक ढांचे से कट गया है।अब आत्म सजगता की जगह वस्तुग्रस्तता;जिज्ञासा,श्रद्धा और संशय की जगह स्वप्नहीनता;नास्टेल्जिया और यूटोपिया की जगह अतिवर्तमानता; प्रक्रिया की जगह इवेंट, आस्था की जगह अनास्था, इतिहास की जगह मिथक,प्रतिरोध की जगह पेशेवराना प्रतिमत;सांस्कृतिक मिश्रण की जगह सांस्कृतिक संकरता; अध्यात्म की जगह कर्मकांड;दर्शन की जगह प्रदर्शन का साम्राज्य है।
*'नाना रूपात्मक जगत' पर चढ़े सभ्यता के नाना आवरण
से 'नाना भावात्मक जगत' क्षतिग्रस्त और धूमिल हो चुका है।
इस सांस्कृतिक परिघटना को साहित्य के क्षेत्र में 'आत्मक्षय का युग' नाम से संबोधित किया जाना चाहिए।
* आज साहित्यिक पाठ में आत्मक्षय के रूपों का अध्ययन किया जाना चाहिए। पाठ में आज के मनुष्य के बिखराव और अलगाव के रूपों,कारणों की खोज की ही जरूरत नहीं है बल्कि उसके स्वप्न निर्माण की दिशा के संकेत की भी मांग है।
*उत्तर समय के साहित्य और आलोचना में मौजूद नैरेटर,चरित्र,परिवेश,भाव,यथार्थ गहरे कम और क्षैतिज ज्यादा हैं।व्यापकता और गहराई के असंतुलन से उपजा मनुष्य एक मूलहीन और मूल्यहीन मनुष्य सभ्यता की दिशा में है। यह भरम भी अब दरक गया है कि बाजार और वस्तुएं नए आज़ाद मानव की पार्श्व सामग्री हैं।साइबर सभ्यता स्वाधीनता के विरुद्ध नई किस्म की परतंत्रता पर आधारित वस्तुतः निगरानी और खुफिया सभ्यता है।साइबर टेक्नोलॉजी सिर्फ माध्यम ही नहीं पूंजीवाद का एक नवीन स्वरूप है।इसलिए आज के पाठ पर इस विभाजित मनोदशा की गहरी छाप है।
*साहित्य में असुरक्षा,अविश्वास और आत्म ध्वंस के अनेक रूप उत्तर समय की उत्तर औपनिवेशिक आक्रमण की देन हैं। विभाजित मनस्कता,सिजोफ्रेनिया, उन्माद,अवसाद,एकालाप,चुप्पी,हैरतअंगेज गतिविधि और क्रूरतापूर्ण खेल इस वक्त के साहित्य में जमा होने लगे हैं जो भविष्य में घनीभूत होते जाएंगे।
*उत्तर समय का सौंदर्यशास्त्र राजनीतिक सतहीपन से गहरे प्रभावित है।अस्मितामूलक विमर्श,मिथकीय विमर्श,बाजार विमर्श और नस्लीय राष्ट्रवादी विमर्श इसके उदाहरण हैं।आजकल अस्मिता विमर्श की दो धाराएं स्पष्ट हैं-प्रतिरोधी और प्रतिगामी।
*उत्तर समय में साहित्य अध्ययन के लिए 'क्षतिग्रस्त आत्म और प्रतिरोध' की गहन परख और पड़ताल होनी चाहिए;उन्हें एकत्रित और संगठित किया जाना चाहिए और नए मनुष्य,स्वप्न और साहित्य के लिए नवीन 'संगठित आत्म और प्रतिरोध' के निर्माण का मानचित्र पेश करना चाहिए।
* नए 'संगठित आत्म और प्रतिरोध' के निर्माण के लिए ग्लोबल चिंतन और ग्लोकल एक्शन न केवल आर्थिक सामाजिक दायरे की जरूरत है बल्कि सांस्कृतिक साहित्यिक क्षेत्र में इसकी फौरी आवश्यकता है।
रामाज्ञा शशिधर,चबूतरा शिक्षक
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