नई दिल्ली । आज मोदी मंत्रिमंडल में शपथ लेते समय मोदी, शाह और ईरानी के अलावा अगर किसी व्यक्ति ने ताली बटोरी तो वो थे एक दुबले पतले सफेद बाल और दाड़ी वाले व्यक्ति ने. प्रताप चंद्र सारंगी 64 साल के हैं और बालासोर लोकसभा सीट से जीत कर आए हैं. जीत भी ऐसी की खर्च सबसे कम. वो भी तब जब उनके प्रतिद्वंदी धन्ना सेठ थे. झोपड़ी में रहने वाले सारंगी अकेले रहते हैं, उनकी मां का पिछले साल निधन हो गया था. उनके सादे जीवन की वजह से लोग उन्हें ओडिशा का मोदी बताते हैं. फकीरी वाली तबीयत रखने वाले सारंगी की यही अदा न केवल उनके मतदाताओं को भा गई बल्कि मोदी को भी और उन्हें दिल्ली आने का न्यौता मिल गया. वे 2004 और 2009 में ओडिशा में विधायक रह चुके हैं ।
वे उड़िया और संस्कृत बोलते हैं, तेज़ दिमाग रखते हैं और प्रखर वक्ता हैं. उनका इस बार मुकाबला दो अमीर प्रतिद्वंदियों से हुआ. दोनों करोड़पति. कांग्रेस के नबज्योति पटनायक खानदानी राजनैतिक हैं. उनके पिता निरंजन पटनायक राज्य कांग्रेस अध्यक्ष हैं. निरंजन पटनायक के छोटे भाई सौम्य रंजन पटनायत बीजू जनता दल के राज्यसभा सदस्य हैं और राज्य के एक सबसे बड़े मीडिया हाउस के मालिक हैं. दूसरी और थे बीजेडी के उम्मीदवार रबिंद्र कुमार जेना. जो कि एक उद्योगपति राजनीतिक हैं. मीडिया और अन्य व्यापारों में वे शामिल हैं पर मोदी लहर और अपनी सादगी से उन्होंने जनता का मन मोह लिया और असंभव सी लड़ाई को जीत लिया ।
ये रहा सारंगी का सफर
लोकसभा में आने से पहले सारंगी बालासोर की नीलगिरी सीट से एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में दो बार जीत पाई है. 2014 में वे भाजपा के टिकट पर बालासोर से चुनाव लड़े थे पर जेना से 1.42 लाख वोटों से हार गए थे. सारंगी शुरू से ही धार्मिक और कर्मकांडी प्रवृत्ति के रहे हैं. वह साधु बनना चाहते थे. उनके करीबी लोग बताते हैं कि नीलगिरि फकीर मोहन कालेज में स्नातक की परीक्षा पास करने के बाद वह साधु बनने के लिए रामकृष्ण मठ चले गए. मठ के लोगों को जब पता चला कि उनकी मां विधवा हैं तो उनको मां की सेवा करने को कहा गया. वे बच्चों को पढ़ाते, गायों की सेवा करते और सादा जीवन जीते. साइकिल पर चलने वाले इस फकीर पर लोगों को विश्वास है कि ज़रूरत के समय वे उनके काम आएंगे. अब यही विश्वास मोदी ने उन पर दिखाया है. और दिल्ली में गद्दी सौंपी है ।
स्रोत : दी प्रिंट
वे उड़िया और संस्कृत बोलते हैं, तेज़ दिमाग रखते हैं और प्रखर वक्ता हैं. उनका इस बार मुकाबला दो अमीर प्रतिद्वंदियों से हुआ. दोनों करोड़पति. कांग्रेस के नबज्योति पटनायक खानदानी राजनैतिक हैं. उनके पिता निरंजन पटनायक राज्य कांग्रेस अध्यक्ष हैं. निरंजन पटनायक के छोटे भाई सौम्य रंजन पटनायत बीजू जनता दल के राज्यसभा सदस्य हैं और राज्य के एक सबसे बड़े मीडिया हाउस के मालिक हैं. दूसरी और थे बीजेडी के उम्मीदवार रबिंद्र कुमार जेना. जो कि एक उद्योगपति राजनीतिक हैं. मीडिया और अन्य व्यापारों में वे शामिल हैं पर मोदी लहर और अपनी सादगी से उन्होंने जनता का मन मोह लिया और असंभव सी लड़ाई को जीत लिया ।
ये रहा सारंगी का सफर
लोकसभा में आने से पहले सारंगी बालासोर की नीलगिरी सीट से एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में दो बार जीत पाई है. 2014 में वे भाजपा के टिकट पर बालासोर से चुनाव लड़े थे पर जेना से 1.42 लाख वोटों से हार गए थे. सारंगी शुरू से ही धार्मिक और कर्मकांडी प्रवृत्ति के रहे हैं. वह साधु बनना चाहते थे. उनके करीबी लोग बताते हैं कि नीलगिरि फकीर मोहन कालेज में स्नातक की परीक्षा पास करने के बाद वह साधु बनने के लिए रामकृष्ण मठ चले गए. मठ के लोगों को जब पता चला कि उनकी मां विधवा हैं तो उनको मां की सेवा करने को कहा गया. वे बच्चों को पढ़ाते, गायों की सेवा करते और सादा जीवन जीते. साइकिल पर चलने वाले इस फकीर पर लोगों को विश्वास है कि ज़रूरत के समय वे उनके काम आएंगे. अब यही विश्वास मोदी ने उन पर दिखाया है. और दिल्ली में गद्दी सौंपी है ।
स्रोत : दी प्रिंट