उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कार्यालय ने राज्यभर के सभी मंडलायुक्तों और जिलाधिकारियों को एक महत्वपूर्ण निर्देश जारी किया है। अब मुख्यमंत्री जनदर्शन में प्राप्त प्रार्थना पत्रों का निस्तारण बिना विधिक और वास्तविक जांच के नहीं किया जाएगा। यह आदेश जनदर्शन प्रणाली की पारदर्शिता और प्रभावशीलता सुनिश्चित करने के लिए जारी किया गया है।
मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ के जनता दर्शन में आए कई आवेदन ऐसे पाए गए हैं जिन्हें तहसील स्तर के नीचे के अधिकारियों द्वारा बिना समुचित जांच और सत्यापन के ही निस्तारित कर दिया गया। इससे पीड़ित पक्ष को न्याय नहीं मिल पा रहा था और शिकायतों का सही समाधान भी नहीं हो पा रहा था।
मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से जारी आदेश (पत्र संख्या CB0007010241104) में कहा गया है कि राजस्व संबंधित प्रकरणों में लेखपाल स्तर से निस्तारण करना उचित नहीं है। तहसीलदार या उससे ऊपर के अधिकारी ही निस्तारण के लिए अधिकृत होंगे और उन्हें स्थल निरीक्षण करते हुए दोनों पक्षों की स्थिति का सम्यक परीक्षण करना अनिवार्य होगा।
पत्र में यह भी स्पष्ट किया गया है कि किसी भी आवेदन को केवल यह कहकर खारिज नहीं किया जा सकता कि वादी अनुपस्थित था। यदि वादी अनुपस्थित है, तब भी मामले की विधिक स्थिति की गहराई से जांच की जानी चाहिए। इसके अतिरिक्त, प्रत्येक स्तर पर की गई जांच और निष्कर्ष को पोर्टल पर अपलोड करना अनिवार्य किया गया है, जिससे कार्यवाही की पारदर्शिता बनी रहे।
मुख्यमंत्री कार्यालय के अपर मुख्य सचिव द्वारा हस्ताक्षरित इस पत्र में अधिकारियों को सचेत किया गया है कि भविष्य में यदि इस निर्देश का उल्लंघन होता है, तो संबंधित अधिकारी की जिम्मेदारी तय की जाएगी। पत्र में यह भी कहा गया है कि प्रार्थना पत्रों के निस्तारण का उद्देश्य केवल खानापूर्ति नहीं, बल्कि न्यायसंगत समाधान है।
यह आदेश 25 जून 2025 को जारी किया गया है और 1 जुलाई को इसे समस्त मंडलायुक्तों व जिलाधिकारियों को भेजा गया है। इससे प्रशासनिक प्रक्रिया में जवाबदेही बढ़ेगी और जनता की शिकायतों का सही तरीके से समाधान सुनिश्चित हो सकेगा।
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा उठाया गया यह कदम जनता की समस्याओं के त्वरित और निष्पक्ष समाधान की दिशा में एक बड़ी पहल मानी जा रही है। इससे न केवल जनदर्शन की प्रक्रिया अधिक प्रभावी होगी बल्कि शासन और जनता के बीच विश्वास भी मजबूत होगा।