रिहाई मंच ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज जस्टिस शेखर कुमार यादव के हालिया बयान को हेट स्पीच करार दिया है और कहा कि इस प्रकार के बयान संविधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं। मंच ने न्यायालय में ऐसे जज के लिए कोई स्थान न होने की बात की है। मंच ने सुप्रीम कोर्ट से जस्टिस यादव के बयान के आलोक में उत्तर प्रदेश के विभिन्न न्यायालयों के फैसलों की समीक्षा करने की मांग की है, जिसमें सम्भल, वाराणसी, मथुरा, जौनपुर, बदायूं और बरेली शामिल हैं।
जस्टिस यादव के बयान से समाज में तनाव बढ़ने का आरोप
रिहाई मंच ने कहा कि जस्टिस यादव का बयान समाज में घृणा और विभाजन को बढ़ावा देने वाला है, विशेष रूप से जौनपुर के अटाला मस्जिद मामले के संदर्भ में। मंच ने कहा कि सम्भल में सर्वे के बाद हुई हिंसा और उसके परिणामस्वरूप उत्पन्न तनाव को देखते हुए न्यायपालिका को इस प्रकार के फैसलों से बचने की आवश्यकता है। मंच ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की कि वह जौनपुर मामले का संज्ञान लें और यह सुनिश्चित करें कि कानून का उल्लंघन नहीं हो और सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखा जाए।
रिहाई मंच का न्यायपालिका और संविधान के खिलाफ बयान
रिहाई मंच अध्यक्ष मुहम्मद शोएब ने कहा कि जस्टिस शेखर कुमार यादव के बयान ने संविधान के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों का उल्लंघन किया है और वह न्यायाधीश के पद पर बने रहने के योग्य नहीं हैं। उनके बयानों से नागरिकों का न्यायिक व्यवस्था से विश्वास कमजोर होगा। मंच ने कहा कि न्यायपालिका के राजनीतिकरण से देश कमजोर होगा और इसे रोका जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि आम नागरिकों पर सामान्य टिप्पणियों के लिए भी कानूनी कार्रवाई की जाती है, लेकिन जजों द्वारा संविधान के खिलाफ बोलने पर कार्रवाई की कोई गुंजाइश नहीं दिखती है।
सांप्रदायिक सौहार्द को खतरे में डालने की साजिश
रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि सम्भल, अजमेर शरीफ, जौनपुर और बदायूं में चल रहे मामलों से यह स्पष्ट हो रहा है कि देश की धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक सद्भाव को तोड़ने की साजिश की जा रही है। उन्होंने कहा कि जस्टिस यादव के बयान ने यह और पुख्ता किया है कि न्यायपालिका में भी हिंदुत्ववादी विचारधारा का प्रभाव बढ़ रहा है। यह देश और संविधान के खिलाफ है। मंच ने सुप्रीम कोर्ट से इन मामलों में शीघ्र और कड़ी कार्रवाई की मांग की है।
कानूनी व संवैधानिक उल्लंघन का आरोप
रिहाई मंच ने यह भी कहा कि पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 के तहत किसी भी धार्मिक स्थल का स्वरूप 15 अगस्त 1947 के बाद नहीं बदला जा सकता, लेकिन उत्तर प्रदेश में सर्वे का आदेश देकर इस कानून का उल्लंघन किया जा रहा है। इसके परिणामस्वरूप विभिन्न मस्जिदों में मंदिर की तलाश और दावा करने का अभियान चलाया जा रहा है, जो समाज को और अधिक विभाजित कर रहा है।
न्यायपालिका पर उठते सवाल
रिहाई मंच ने आरोप लगाया कि जस्टिस शेखर कुमार यादव का बयान और उनके आचरण ने न्यायपालिका के स्वतंत्र और निष्पक्ष होने पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि यह बयान एक खतरनाक प्रयास है, जिससे भारतीय लोकतंत्र और संविधान की नींव को हिलाने की कोशिश की जा रही है, और यह किसी भी सूरत में स्वीकार्य नहीं है।