“शट डाउन जेएनयू” का कैम्पेन एबीवीपी को पड़ा भारी । हर्षित आजाद

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जेएनयू छात्रसंघ चुनाव में यूनाइटेड लेफ्ट ने चारों पदों पर जीत हासिल की है. अध्यक्ष पद के लिए Aishe Ghosh ने 2313 वोटों के साथ जीती, 1128 वोटों के साथ एबीवीपी के मनीष जांगिड़ दूसरे स्थान पर रहे व तीसरे स्थान पर बापसा के जितेंद्र सुना ने 1122 वोट पाए. चौथे स्थान पर एनएसयूआई से प्रशांत कुमार ने 761 वोट हासिल किए, पांचवे स्थान में छात्र राजद की प्रियंका भारती को 156 वोट मिले. अंत मे बात आती है निर्दलीय उम्मीदवार राघवेंद्र मिश्रा की जो प्रेसिडेंशियल डिबेट के बाद से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का दूसरे रूप के रूप में जाने जाने लगे थे, उन्हें कुल 53 वोट से ही संतोष करना पड़ा.

उपाध्यक्ष पद के लिए साकेत मून ने 3365 वोटों के साथ जीत हासिल की है, 1335 वोटों के साथ एबीवीपी की श्रुति अग्निहोत्री दूसरे स्थान पर रही. तीसरे स्थान पर छात्र राजद की ओर से ऋषिराज यादव को मात्र 283 वोट मिले.

सामान्य सचिव पद के लिए सतीश यादव ने 2518 वोटों के साथ जीत हासिल की, 1355 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर एबीवीपी से सबरीश पी.ए रहे व 1232 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर बापसा के वसीम आर.एश ने कड़ा मुकाबला किया.

संयुक्त सचिव पद के लिए मो. दानिश 3295 वोटों के साथ जीते, एबीवीपी की ओर से सुमंता साहू 1508 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहे.

टिप्पणी – यह चुनाव लेफ्ट के लिए अस्मिता का सवाल बन चुका था, अंततः उन्हें गठबंधन करना पड़ा. अगर यह चुनाव लेफ्ट के छात्र संगठन बिना गठबंधन के लड़ते तो स्थिति गंभीर होगी. यूनाइटेड लेफ्ट के प्रत्याशी अपने दूसरे स्थान के प्रतिद्वंद्वी के दोगुनी व उससे ज्यादा बढ़त बनाये हुए है. यह कहना कि लेफ्ट जेएनयू छात्रसंघ में कमजोर हो गया है, यह वाजिब नही होगा.

अध्यक्ष पद में मुख्य प्रतिद्वंद्वी एबीवीपी व बापसा रहा तो उपाध्यक्ष पद के लिए एबीवीपी रहा. सामान्य सचिव के लिए भी बापसा व एबीवीपी व संयुक्त सचिव में भी एबीवीपी रहा.

लेफ्ट समेत सभी संगठनों ने खूब भुनाया भाजपा-आरएसएस व एबीवीपी के “शट डाउन जेएनयू” कैम्पेन. विगत वर्षों में जेएनयू में कथित देशविरोधी नारेबाजी के दौरान इस कैम्पेन को दक्षिणपंथियों द्वारा लाया गया था. इसी के कारण इस छात्रसंघ चुनाव में एबीवीपी को काफी नुकसान उठाना पड़ा. इस कैम्पेन को एबीवीपी के विरोधियों द्वारा जेएनयू की अस्मिता से जोड़ कर जोर-शोर से प्रचारित किया गया.

इसके साथ ही बापसा जोकि लेफ्ट व एबीवीपी,लेफ्ट व एनएसयूआई के लिए कठिनाई बनता जा रहा था परिमाण में भी यह साफ हुआ है. बापसा (बिरसा, अम्बेडकर, फूले स्टूडेंट असोसिएशन) जिससे जुड़े लोगों का मानना है कि उन्हें किसी भी संगठन में उचित स्थान नही दिया गया, वे जातिवाद के शिकार हुए, सामाजिक न्याय व समानता की विचारधारा के साथ उन्होंने यह चुनाव लड़ा. यह संगठन मजबूत होकर उभरा है.

नोटा का भी हुआ प्रयोग. यह बहुत प्रासंगिक लगेगा कि जेएनयू छात्रसंघ चुनाव में भी ऐसे छात्र होंगे जो किसी संगठन, विचारधारा व प्रत्याशी से सहमत नही होंगे. आइए कुछ आंकड़े बताते है, अध्यक्ष पद के लिए कुल 115 छात्रों ने नोटा चुना है, उपाध्यक्ष के लिए 418, सामान्य सचिव के लिए 520 और संयुक्त सचिव पद के लिए सबसे ज्यादा 609 बार नोटा चुना गया. कुछ सैकड़ा वोट खाली व अमान्य रहे.

नोट - ये 70 फीसदी के आंकड़े है.अभी नतीजों की औपचारिक घोषणा होना बाकी. दरअसल, दिल्ली हाई कोर्ट ने नतीजों की घोषणा पर रोक लगा दी है. ये रोक 17 सिंतबर को होने वाली अगली सुनवाई तक है.

लेखक : हर्षित आजाद

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