विज्ञान में अमूमन प्रयोग के दौरान सफलता व असफलता के बीच अनिश्चितता बनी रहती है। Anand Kumar

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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के वैज्ञानिकों ने अनथक मेहनत से भारत का झंडा चांद पर फहराहने के लिए हर सम्भव प्रयास में जुटे हैं।चन्द्रयान-2 का लैंडर 'विक्रम' चांद से 2.1 किलोमीटर पहले ही इसरो स्टेशन से संपर्क टूट गया।महज चन्द किलोमीटर की दूरी से भारत इतिहास रचने में चूक गया।यह मिशन इसरो के लिये नया होने के साथ ही चुनौतीपूर्ण भी रहा।
स्वभाविक तौर पर देश में मायूसी कि लहर दौड़ पड़ी।इसरो प्रमुख के.सिवन मिशन के लिए किया हुआ संघर्ष आँखों के रास्ते आसू बनकर टपक पड़ा ऐसे में प्रधानमंत्री जी ने श्रेष्ठ अभिवावक की भूमिका निभाते हुये गले लगाकर इसरो प्रमुख सिवन को सांत्वना एवं ढाढ़स बांधे।

करीब डेढ़ महीने पहले चांद के सफर पर निकला चंद्रयान-2 वर्तमान में 95 प्रतिशत सफलता प्राप्त कर लिया।चन्द्रयान-2 को तीन हिस्सों में बटा गया था ऑर्बिटर,'विक्रम' नामक लैंडर और रोवर 'प्रज्ञान'।दुर्भाग्य से लैंडर 'विक्रम' और रोवर 'प्रज्ञान' का संपर्क इसरो सेंटर से टूट गया लेकिन ऑर्बिटर अपने मिशन में सफल होते हुए चांद से करीब 100 किलोमीटर दूर कक्षा में चक्कर लगा रहा है।


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लैंडर 'विक्रम' चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग न कर पाने से हम भारतीयों को मायूस होने की जरूरत नहीं है क्योंकि मिशन का उद्देश्य 95 प्रतिशत सफल रहा।अब ऑर्बिटर एक वर्ष के बजाय सात वर्षों तक चांद के चक्कर लगायेगा साथ ही महत्वपूर्ण सूचनाओं को वैज्ञानिकों तक पहुँचाने में मदद करेगा।सूचनाओं से वैज्ञानिक आंकड़ो का विश्लेषण करने में सहजता होगी।भविष्य में आने वाली चुनौतीयों का सामना करने और अनुभव को बढ़ाने में कारगर साबित होगा।चंद्रयान-2 अभियान एक हद तक सफल नज़र आ रहा।इसरो के वैज्ञानिक बधाई के पात्र है,ये अभियान सराहनीय है।

लेख लिखे जाने तक इसरो ने चन्द्रयान-2 के सफलता का नमूना पेश करते हुये आधिकारिक रूप से बताया चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर ने चांद पर विक्रम की धर्मल इमेज खींची है।लैंडर की लोकेशन का पता चल गया है निश्चित ही ये हार्ड लैंडिंग हुई है वैज्ञानिक विक्रम से संपर्क बनाने की पूरी कोशिश में जुटे है।इसरो के लिए लैंडर से संपर्क आखिरी समय में टूट जाना शोध का विषय बन गया।चन्द्रयान-2 का उद्देश्य चांद के दक्षिणी ध्रुव को टटोलना,लैंडर के माध्यम से पता लगना चांद पर भूकंप आता है या नहीं,वहां मौजूद मैग्नीशियम,एल्युमिनियम,सिलिकॉन का पता लगाना साथ ही ऑर्बिटर के मदद से यहां पानी और खनिजों से जुड़े साक्ष्य जुटाना।

भारत के अपेक्षा में विकसित देश अमेरिका,रूस और चीन चन्द्रमा की सतह पर लैंडिंग करा चुके है।लेकिन भारत विश्व में पहला देश है जिसने दक्षिणी ध्रुव पर लैंडिंग कराने की योजना बनायी,क्योंकि उस पर लैंडिंग जटिल है।उल्लेखनीय है भारत ने कठिन लक्ष्य चुना,यही संभवत वजह रही विश्व की निगाहें भारत के चंद्रयान-2 पर रही।अमेरिका की स्पेस एजेंसी नासा ने कहा
"अंतरिक्ष जटिल है हम चंद्रयान 2 मिशन के तहत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने की इसरो की कोशिश की सराहना करते हैं आपने अपनी यात्रा से हमें प्रेरित किया है और हम हमारी सौर प्रणाली पर मिलकर खोज करने के भविष्य के अवसरों को लेकर उत्साहित हैं".

विज्ञान में अमूमन प्रयोगशाला में प्रयोग के दौरान सफलता व असफलता के  बीच अनिश्चितता बनी रहती है।विज्ञान का प्रारंभिक सिद्धान्त कहता है नाकामी से उत्पन निराशा और सफलता से उपजी उत्सुकता दोनों को नियंत्रित करने की जरूरत है।विज्ञान आमतौर पर प्रयास से शुरू होकर प्रयोग का सफ़र करते हुये सफलता या असफलता के द्वार पर खड़े होकर घंटी बजाती है।जीवन में व्यक्ति/संगठन को असफलताओं से हारना नहीं चाहिए,असफलता शब्द में 'अ' अक्षर को मूक करके सफलता को अपनाने के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए।

चांद को छूने की पहली कोशिश 1958 में अमेरिका और सोवियत संघ रूस ने की थी।अगस्त से दिसंबर 1968 के बीच दोनों देशों ने 4 पायनियर ऑर्बिटर (अमेरिका) और 3 लूना इंपैक्ट (सोवियन यूनियन) भेजे,लेकिन सभी असफल रहे।अब तक चंद्रमा पर दुनिया के सिर्फ 6 देशों या एजेंसियों ने सैटेलाइट यान भेजे हैं।कामयाबी इनमें से तीन को ही मिली है अब तक ऐसे 38 प्रयास किए गए, जिनमें से 52% सफल रहे।ऐसे में भारत का यह पहला प्रयास रहा है हम भारतीयों को अपने वैज्ञानिकों के काबिलियत पर गर्व है वो दिन दूर नहीं जब भारत का झंडा गौरवान्वित मुद्रा में चन्द्रमा के उस कोने पर लहरायेगा जहां आज तक विश्व के अन्य देशों ने सोचा तक नहीं है।वो दिन अंतरिक्ष इतिहास का सुनहरा दिवस होगा।

प्रधानमंत्री ने जब इसरो के चेयरमैन के.सिवन को गले लगाकर वैज्ञानिक समुदाय को सान्त्वना प्रदान कर थे साथ ही देश के अभिवावकों को संदेश भी दिये,जिस दिन भारत के अभिवावक अपने बच्चों के असफलताओं को गले लगाकर ढाढ़स बांधेंगे उस दिन हर घर से के.सिवन निकलेगा।

लेखक : आनंद कुमार, आईआईएमसी,नई दिल्ली के छात्र हैं ।

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