तश्वीर : फ़ेसबुक गैलेरी |
हत्यारे दोस्त बनकर आते हैं
गले मिलते हैं
फिर उसे उतारकर चले जाते हैं
वे किसी भी चीज में छुपकर आ सकते हैं
जैसे कुश की अंगूठी में
अमृत की बूटी में
गमछे की धार में
रेशम के तार में
सांस की धूल में
सम्मान के फूल में
सहानुभूति के लोर में
शाम में भोर में
बनकर छत या दीवार
या फिर सपनों के मस्तूल पर सवार
पहले वे एक गर्दन उतारते हैं
फिर दूसरी फिर तीसरी
फिर वे गर्दन के व्यापारी हो जाते हैं
फलता है
अस्पताल से मसान तक उनका
आंख लिवर यकृत तिल्ली झिल्ली
यहां तक कि अस्थि राख का ठेका चलता है
कोई तिलक लगाकर रामनामी ओढ़ा हो
किसी ने सींक में कविता को गोदा हो
कोई देशभक्ति के डिस्को का अवतार हो
कोई बीन हो,ढोल हो,सितार हो
वह जात के नाम पर धर्म के नाम पर
मिथक के नाम पर इतिहास के नाम पर
देश के नाम पर ईश्वर के नाम पर
यहां तक कि इंसानियत के नाम पर
तुम्हारा शिकार कर सकता है
यह जरूरी नहीं कि हत्यारा तुम्हारे सामने से आए
असलहा चमकाए
तुम्हें खूंखार स्वर में धमकाए
वह तुम्हारे साथ तुम्हारी मौत तक दोस्त बनकर
रह सकता है
तुम्हारी मौत के बाद सहानुभूति का
बेशकीमती सौदा कर सकता है
तुम्हारे जीवन से कमाए हुए
माल का एक हिस्सा लगा सकता है
तुम्हारे धर में अपना सर जोड़कर
अमरता का आदमकद उगा सकता है
पढ़ सको तो पढ़ो धर सको तो धरो
हत्यारे की कोई भी सेल्फी उठा लो
उसके पार्श्व में रंग रोशनी के बेल बूटों से भरी
सिर्फ मक़तल की लाशें सजी होती हैं
जिस पर हत्यारे की रूह सोती है
हत्यारा चाहे जितना चालाक हो
उसकी कुछ खासियतें याद रखनी चाहिए
जैसे वह कभी अकेला नहीं रह सकता है
वह गिरोह में घिरकर महफूज़ महसूसता है
उसकी हंसी की खिलन से चेहरे की त्वचा नहीं हिलती है
उसकी आँखों में बुरे सपनों की कालिमा और
उनींदेपन की लालिमा का ज्वार उठता रहता है
शिराएं तनी और सांसें घनी रहती हैं
वह पंजों को दबाकर और एड़ियों को उठाकर
चलता है ताकि मिट्टी पर उसके गुनाह का
निशान न पड़े
कहते हैं मुसोलनी देश की जनता का कत्ल
करते करते जब थक जाता था
तब बीथोवन का संगीत सुनता था
कहते हैं जब उसकी नींद की
सारी चिड़िया मर गई
तब चिकित्सकों ने शास्त्रीय संगीत
नींद का इलाज बताया था
कोई विष्णु पुलष्कर
हत्यारे की जलते उल्कापिंड सी आंखों का
सामना कैसे कर सकता है
संगीत चाहे जितना शीतल हो
आग में ठंडक नहीं भर सकता है
पूरी उम्र दुश्मन बनाकर
कोई सलामत रह सकता है
लेकिन एक हत्यारा दोस्त
उसकी खोपड़ी में
लहू लोथड़े का शर्बत घोलकर
पलक झपकते पी सकता है
सारांश इतना है कि
दोस्त हत्यारा हो सकता है
हत्यारा कभी दोस्त नहीं हो सकता।
लेखक : डॉ. रामाज्ञा शशिधर