देशकाल से बिंधने वाला साहित्य की प्रतिपक्ष की भूमिका निभाता है - प्रो. अजय तिवारी

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रिपोर्ट :जगन्नाथ दुबे

भोजपुरी अध्ययन केंद्र, काशी हिंदू विश्विद्यालय द्वारा हिंदी के महत्वपूर्ण आलोचक अजय तिवारी का एकल व्याख्यान राहुल सभागार में आयोजित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता कवि कथाकार प्रो. बलिराज पांडेय ने की।
भोजपुरी अध्ययन केंद्र,काशी हिंदू विश्वविद्यालय की शोध-छात्रा यश्वी मिश्रा की शोध मौखिकी और प्रो.अजय तिवारी के 'साहित्य का देशकाल' विषयक व्याख्यान से यह सत्र शुरू हो रहा है।

अपने वक्तव्य में प्रो.अजय तिवारी ने कहा देशकाल से बंधकर लिखने वाला रचनाकार घटनाओं पर ध्यान देता है जबकि देशकाल से बिंधकर लिखने वाला रचनाकार देशकाल की प्रवृत्तियों पर ध्यान देता है। इसे उन्होंने बाल्मीकि और रीतिकालीन कवियों के माध्यम से बताया। उन्होंने कहा बाल्मीकि देशकाल से बिंधकर लिखने वाले रचनाकार हैं जबकि रीतिकालीन कवि देशकाल से बंधकर लिखते हैं। देशकाल से बंधने वाला साहित्य घटनाओं तक ही सीमित रहता है जबकि देशकाल से बिंधने वाला साहित्य घटनाओं की प्रवृत्तियों की तह तक जाता है।  उन्होंने कहा साहित्य का जनतंत्र पीड़ित समुदाय से प्रतिबद्ध होता है। इसीलिए साहित्य अपनी प्रवृत्ति में सत्ताधारी का प्रतिपक्ष होता है। देशकाल के समायोजन से निर्मित प्रवृत्ति रामायण में दिखाई पडतो है। ऐसे काव्य की प्रवृत्ति संश्लेषणात्मक होती है। 
उन्होंने कहा कि वैज्ञानिक या समाजशास्त्रीय खोज व्यवहारिक तथ्यों पर आधारित होती है जबकि साहित्य में ऐसा नहीं होता। उन्होंने कहा साहित्य की परंपरा भाव परम्परा है यह तबतक सम्भव नहीं होगा जबतक  अपनी परम्परा से सम्बद्धता न हो। उन्होंने कहा स्मृति अतीत की खोज है और स्वप्न भविष्य की इसलिए आप देखते हैं कि साहित्य स्मृति और स्वप्न दोनों को आधार बनाकर आगे बढ़ता है।


अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो. बलिराज पांडेय ने कहा कि साहित्य की कालजयिता देशकाल के बदलाव के बावजूद उसकी प्रासंगिकता में निहित रहती है। हरिशंकर परसाई के संदर्भ से उन्होंने यह बात कही। 
स्वागत वक्तव्य भोजपुरी अध्ययन केंद्र के समन्वयक प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल ने दिया। अपने स्वागत वक्तव्य में उन्होंने कहा देश के सापेक्ष और देश बद्ध साहित्य ही कालजयी होता है। एक देश का दूसरे देश से द्वंद्वात्मक रिश्ता होता है। यह द्वंद्वात्मकता ही किसी साहित्य को कलजीवी के साथ ही कालजयी भी बनाता है। देश को विविध कालखण्डों में समझने की कोशिश करता हुआ रचनाकार भावप्रवण होता है। यह भावप्रवणता हमेश साहित्य का नकारात्मक पक्ष नहीं होती। भावप्रवणता से देश और काल के अतीत और  अनागत रिश्ते की पहचान भी सम्भव होती है।

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कार्यक्रम का संचालन शोध छात्र दिवाकर तिवारी ने किया। धन्यवाद ज्ञापन प्रो. चम्पा सिंह ने दिया। इस अवसर पर प्रो. वशिष्ठ अनूप, डॉ. नीरज खरे, डॉ. वंशीधर उपाध्याय, डॉ. अमर बहादुर सिंह के साथ ही शोध-छात्र छात्राएं उपस्थित रहे।
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