रिपोर्ताज़ - सुशांत कुमार शर्मा । शाश्वतता की प्राप्ति के लिए एक लंबे नैरंतर्य की आवश्यकता होती है और इस निरंतरता के लिए सत्व की पुनरावृत्ति आवश्यक है. हम गंगा में नहाने जाते हैं, बार बार. हम यह नहीं सोचते कि यह गंगा भी वही है, हमारा शरीर, मन और आत्मा भी वही फिर भी बार बार अवगाहन!
ऐसा सिर्फ श्रद्धा से नहीं होता बल्कि इसके लिए उस गंगा के प्रति एक विश्वास की आवश्यकता होती है. हम कभी सुरसरि में नहाते हैं कभी देवनदी में तो कभी मोक्षदा में. हमारे भाव के परिवर्तन के साथ ही गंगा का सत्व उसकी महिमा हमारे लिए बदल जाते हैं और वह पुनर्नवा हो जाती है।
कविता गंगा की भी प्रक्रिया बिल्कुल इसी के यकसां है. और हम सभी लेखनी के उद्योगी इस काव्य जाह्नवी के किनारे बहने वाले जीव हैं जो गंगा की गति को स्वयं की गति मानकर और आगे और आगे बढ़ते ही चले जाते हैं.
मधुबन गोष्ठी एक ऐसी ही काव्य की सुकोमल सरिता है जो काल के भूगोल पर छह वर्षों से निरन्तरता के साथ गतिमान है.
आज की संध्या पुनः उस सुरसरि में अवगाहन करने की वेला थी और हम सबने अपनी अपनी अंजुली भरकर कविता गंग को अर्घ्य दिया. कविता के बीच खड़े हम कविता की धार में से कुछ कविताएं उठाकर कविता को ही अर्घ्य दे रहे हैं, इसमें हमारी अपनी बस श्रद्धा है बाकी सब कविता मात्र का है.
हमारी इस काव्य यात्रा के आज के खेवनहार रहे डॉ चन्द्रशेखर पाण्डेय शम्स जिनके कुशल संचालन ने आज 20 से अधिक कवियों के काव्य पाठ को एक सुंदर संयोजन में पिरोकर काव्य माला बनाई.
सौभाग्य की बात यह रही कि पंजाब की पंचनद भूमि का सींचा हुआ एक सुंदर शायरी का शजर हमारे बीच मौजूद रहा, ये थे हमारे आदरणीय उर्दू कविता के एक बड़े हस्ताक्षर शायर मुकेश आलम जी. साथ ही महेंद्र कुमार सानी जो न सिर्फ एक बड़े शायर बल्कि एक कुशल अध्येता भी हैं उनका भी सुखद आगमन रहा.
कविवर डॉ सर्वेश त्रिपाठी जी, जिनकी छत्रछाया और प्रेरणाएं इस गोष्ठी की संजीवनी हैं, उपस्थित रहे.
शरदेंदु उपाध्याय, गौरव सिंह, शाश्वत उपाध्याय, महेंद्र मिश्र मोहित, कौशलेंद्र मिश्र, प्रणव मिश्र तेजस, मयंक तिवारी, देवेन्द्र भट्ट दीपक, रचनात्मक पंकज, कुशाग्र अद्वैत, सौरभ, श्वेता जयसवाल, सौम्या झा, अक्स समस्तीपुरी, गौरव सुल्तान, सुशांत शर्मा आदि नवोदित कवियों ने अपना काव्य पाठ किया ।
जय कविता।
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