विश्वगुरु का दम्भ भरने वाला देश कितना खोखला है ! क्या कभी देखा है आपने ? विमल कुमार

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जिस देश का वर्तमान चमकता न दिख रहा हो वहां यह बात विश्वशनीय नहीं लगती है की अतीत गौरवपूर्ण रहा होगा ...अतिश्योक्ति से रंगे इतिहास के पन्ने झूठ की अमरबेल जैसे प्रतीत होते हैं...अतीत को जानने का स्रोत इतिहास है और यदि इतिहास लेखन ही संदिग्ध हो तो क्या करेंगे आप...?

तमाम विमर्श सदैव चर्चा में रहते हैं...लेकिन लच्छेदार भाषणों के शोर और अलंकारिक भाषा की चमक में जीवन की जमीनी सच्चाइयां दम तोड़ देती हैं...!

शैक्षणिक संस्थान ही मनुष्य के मस्तिष्क को उर्वर जमीन प्रदान करते हैं....और यही उर्वर मस्तिष्क समाज और देश को न सिर्फ प्रगतिशील बनाते हैं बल्कि विकास को गति प्रदान करते हैं..लेकिन उस समाज और देश की गति क्या होगी जहाँ के संस्थान ही ज़हालत और तंगदिली के अड्डे हों...?

शोषण की इन तमाम संरचनाओं को देख कर वेदना का असीम ज्वार फूटता है और  क्षुब्ध मन सोचता है कि ये चमकती इमारते अपने अंदर कितना कालापन लिए हुई हैं...लेकिन इमारतों पर कालेपन की तोहमत लगाना जायज़ नहीं..इन इमारतों का कालापन तो तथाकथित बुद्धजीवी वर्ग के मन के कालेपन का प्रक्षेपण ही तो है...!

मनुष्य के शारीरिक विकास के साथ मानसिक विकास भी होना जरूरी है...क्योंकि मानसिक विकास  ही प्रगति का वास्तविक मानदंड है...और इसकी जिम्मेदारी शैक्षणिक संस्थाओं पर रहती है...लेकिन उस समाज और देश के बारे में क्या कहेंगे जो सिर्फ आत्ममुग्धता का शिकार हो...जो अतीत के गान द्वारा ही वर्तमान को बरगलाने पर तुला हो..!

यह कहानी ...नहीं नहीं ...सच्चाई है... एक ऐसे समाज और देश की जिसकी संतान के रूप हिस्सा होना शुरुआती जीवन से ही गौरव की  की अनुभूति कराता रहा है...लेकिन कागजी अनुभूतियां कब तक टिकेंगी ..उम्र के प्रत्येक पड़ाव पर यदि आप अपनी संजीदगी और संवेदनशीलता बरकरार रख पाते हैं तो तो गौरव का यह आभासी भ्रम टूटेगा...शायद आप भी इसे महसूस करें...!

विश्वगुरू का दंभ भरने वाला देश कितना खोखला है... क्या कभी देखा है आपने..? यदि मन हो तो आइए ले चलता हूं आपको ऐसी ही एक खोखली संरचना की तरफ...बहुत आसानी से हम अपनी हर समस्या के लिए गालियों का मुँह राजनीति की तरफ मोड़ देते हैं...लेकिन बंधू यह बहुत सतही तरीका है...विश्वगुरु की संतानों का निर्माण करने वाली संस्थाओं को क्या कभी देखा है आपने...?
कितनी घुटन है यहाँ ...जाति ,धर्म ,क्षेत्र जैसी तंगदिली की बदबू से बजबजा रही इन संरचनाओं से मुठभेड़ कभी करिए तो...!

क्रमशः जारी.....

#जैसा मैंने देखा
#भारत की बात सुनाता हूँ

©️विमल

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2टिप्पणियाँ

  1. आपकी दर्देदिली ने हक़ीकत बयां किया है। सच को सही धार दी है। लेकिन इन तमाम नकारात्मक प्रवृत्तियों पर हम अपना रोना उलीचने की बजाय कुछ बेहतर करने के प्रयास में जुटे हैं। लगातार हम अपनी कोशिशों से नया लिंक बना रहे हैं। हम जैसा होना चाहिए वैसा सचमुच होकर दिखाने का प्रयास कर रहे हैं। आग, गुस्से, क्रोध, आक्रोश से हम मौजूदा हालात नहीं बदल सकते हैं; इसके लिए हम खुद ही नए प्रण और संकल्प से सही दिशा में चल रहे हैं। हम नवनियुक्त अध्यापक हैं। विश्वविद्यालय ने हमें ज़मीन दी है। हम इस ज़मीन में फसल बन उगने के लिए अभ्यस्त हैं। समय बदलेगा और माहौल बदलेंगे। बस हमें अपनों का साथ और साथी चाहिए। आपने पूरी संवेदनशीलता से इस ओर ध्यान आकृष्ट कराया और चिंता व्यक्त की, बहुत-बहुत धन्यवाद! आगे की प्रतीक्षा होगी।

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