चुनावी समय में लोकपाल की नियुक्ति भ्रष्टाचार के प्रति सरकार की गम्भीरता नही : आनन्द कुमार

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देश के विकास में सबसे बड़ी बाधा भ्रष्टाचार जैसी जहरीली बीमारी है।आजादी के बाद से देखा गया है भ्रष्टाचार में सरकारी कर्मचारियों से लेकर अधिकारियों तक बड़े पैमाने पर संलिप्त होते है।इससे ज्यादा नुकसान हमारे देश के ग़रीब वर्ग व अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर दिखता है।भ्रष्टाचार की ये बीमारी कैंसर के तरह पनपते हुए देश के सिस्टम के पुर्जे-पुर्जे में अपनी जगह बना लिया है ये हमारे देश के विकास को हाशिये पर धकेलने के साथ ही विकास में बाधक बन रही है,बीमारी के आख़री चरण में पता चलता है देश का विकास रास्ते से भटकते हुए विनाश की राह पर चल पड़ा है।
आज़ादी से लेकर आज तक सरकारी तंत्र की बड़ी खामी रही है सरकारी पद पर बैठे कर्मचारी से लेकर बड़े स्तर के अधिकारी तक अपने सरकारी पद का दुरुपयोग करते हुए भ्रष्टाचार में संलिप्त होते है।ये भी देखा गया है की अधिकारी अपने चतुराई से कागजी कारवाई में उलझा कर बचने के विकल्प तलाश लेते है।
हाल ही में सरकार ने एक ऐसा निर्णय लिया है जिससे भ्रष्टाचार में संलिप्त लोगो पर नकेल कसेगी।यह निर्णय है लोकपाल समिति के गठन का।सूचना के अधिकार के बाद लोकपाल की नियुक्ति के साथ ही आम जनता को ये हथियार दे दिया है किसी भी स्तर के सरकारी कर्मचारी,बड़े से बड़े अधिकारी,यहाँ तक की सांसद,मंत्री,प्रधानमंत्री एवं पूर्व प्रधानमंत्री के खिलाफ भी भ्रष्टाचार से जुड़े मसले की शिकायत कर सकता है और दोषी व्यक्ति पर कानून कारवाई होगी।भ्रष्टाचार विरोधी लोकपाल समिति व्यवस्था के लागू हो जाने से नौकरशाही में व्याप्त भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा।
लोकतंत्र की खूबसूरती होती है पारदर्शिता।लोकपाल के चयन में पाँच सदस्यों की समिति होती है कानून के अनुसार प्रधानमंत्री,लोकसभा स्पीकर,लोकसभा नेता प्रतिपक्ष,सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश औऱ राष्ट्रपति द्वारा कानूनविद।लोकसभा में कांग्रेस औपचारिक रूप से विपक्षी दल नही है ऐसे में मल्लिकार्जुन खड़गे को लोकसभा में नेताप्रतिपक्ष का दर्जा नही प्राप्त है।गौरतलब है चयन समिति में सिर्फ 4 ही सदस्य रहे जिसमे विपक्ष नदारद रहा।स्वस्थ व मजबूत लोकतंत्र का आधार होता है मजबूत पक्ष और विपक्ष,लोकपाल के चयन में विपक्ष का प्रतिनिधित्व न होना।ये चयन परिक्रिया लोकतंत्र की खूबसूरती रूपी पारदर्शिता को फीका करते नज़र आते है।
भ्रष्टाचार के खिलाफ आम जनता की आवाज़ को लामबंद करने में समाजसेवी अन्नाहजारे जी का योगदान सदैव स्मरणीय रहेगा।ये उनके दृढ़संकल्पित इरादों का परिणाम है।लंबे जदोजहद व दशकों से लंबे इंतज़ार के बाद लोकपाल समिति का गठन हुआ।देश को पहला लोकपाल पिनाकी घोष के रूप में मिल गए है।जिनकी नियुक्ति राष्ट्रपति जी द्वारा की गयी।
इतिहास के पन्नों में जाकर टटोलने से पता चलता है लोकपाल विधेयक को क़ानून अंगुली जामा पहनाने की लड़ाई के पृष्ठभूमि 1968 से लिखी जा रही थी अतः1 जनवरी 2014 को औपचारिक रूप से लोकपाल समिति कानूनी शक्ल धारण कर लिया।
सीबीआई,परिवर्तन निदेशालय जैसी जाँच एजेंसियो के रहते हुए भी लोकपाल समिति के गठन की आवश्यकता क्यों आ पड़ी?ये एक ऐसी संस्था है जिसका उद्देश्य देश में व्याप्त भ्रष्टाचार को उखाड़ फेक देना।पिछले कई वर्षो से इन ऐजेंसीयो की निष्पक्षता,स्वंत्रता औऱ विश्वसनीयता पर प्रश्न खड़े होते रहे है।ऐसे में भारतीय आम जनमानस में प्रश्न उठना स्वभाविक है क्या लोकपाल समिति की स्वायत्तता और विश्वसनीयता को सरकार और सता रूढ़ राजनीतिक दल द्वारा हस्तक्षेप तो नही किया जाएगा?इसका सटीक जवाब तो समय का पहिया ही देगा।
भारतीय राजनीति में सदैव से राजनीतिक दलों द्वारा भ्रष्टाचार का प्रमुख चुनावी मुद्दा रहा।गौरतलब है चुनावी कार्यक्रम की पूरी घोषणा हो चुकी है आदर्श आचार संहिता लागू है चुनाव को देखते हुए सरकार ने भ्रष्टाचार विरोधी व्यवस्था 'लोकपाल' को लागू करने में अधूरी इच्छाशक्ति दिखाई।जनवरी 2014 से भ्रष्टाचार विरोधी व्यवस्था लोकपाल समिति को कानूनी मान्यता प्राप्त हो गयी थी।तो लोकपाल के गठन में 5 वर्ष की देरी क्यो?अगर मौजूदा सरकार भ्रष्टाचार के प्रति इतनी ही गम्भीर थी तो ये निर्णय चुनाव के दौरान ही क्यों लिया?लोकपाल की नियुक्ति चुनावी समय सरकार की भ्रष्टाचार के प्रति गंभीरता की पोल खोलता है।
ये निर्णय भले ही आम चुनाव 2019 से प्रेरित है।देर से ही सही लोकपाल जैसी भ्रष्टाचार विरोधी व्यवस्था की माँग लंबे समय से चली आ रही है मैं इस व्यवस्था का स्वागत करता हूँ हमारे सिस्टम के पुर्जे-पुर्जे में व्याप्त भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में कारगर साबित होगा। समिति के चार न्यायिक एवं चार गैर न्यायिक सदस्य है।प्रधानमंत्री की अगुवाई वाली चयन समिति ने न्यायिक एवं गैर न्यायिक सदस्यों के साथ ही लोकपाल की चयन किए है।यह स्वतंत्रत एवं निष्पक्ष रूप से भ्रष्टाचार के विरूद्ध कार्य करने का अधिकार प्राप्त है।
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© लेखक : आनंद कुमार
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