प्रो. वी एन मिश्र के इस्तीफे से निष्ठावान अधिकारियों का टूटेगा मनोबल: हरेन्द्र शुक्ला

Sachin Samar
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सरकारें और देश के राजनेता चाहे जो भी दावे करें सच यही है कि आजादी के साथ दशकों बाद भी हमारा तंत्र काम का ऐसा माहौल नहीं दे पाया है जिसमें एक ईमानदार और कर्मठ अधिकारी अपने मन मुताबिक बेहतर काम कर सके । बीएचयू के सर सुंदरलाल अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक प्रोफेसर विजयनाथ मिश्र का अचानक इस्तीफा इसी अराजक स्थिति की जीवंत मिसाल है । अपने सात महीने के कार्यकाल में प्रोफेसर मिश्र प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार और मरीजों के कल्याण के लिए जो जतन किए और उससे बेहतर कार्य संस्कृति की जो नजीर स्थापित हुई वह अपने आप में एक मानक है ।
वीएन मिश्रा के फ़ेसबुक से

चाहे वह मरीजो और उनके परिजनों को नि:शुल्क भोजन,डिजिटल कार्ड, जेनेरिक दवाइयां, कडकडाती ठंढ में कंबल घर की व्यवस्था, मरीजो को इमरजेंसी और ओपीडी तक लाने के लिए अटल ई रिक्शा, इमरजेंसी वार्ड में नि:शुल्क इलाज, प्रतिदिन सुबह मरीज और उनके परिजन को योग करने की व्यवस्था रही हो या रात 2 बजे तक स्वयं अस्पताल का चक्रमण कर व्यवस्थाओं की निगरानी का प्रयास। इन सभी ने अस्पताल की व्यवस्थाओं को एक नई रवानगी दी थी। इससे अस्पताल आने वाले मरीजों में आशा की एक नई उम्मीद जागी थी। इसके बाद भी अगर किसी कर्तव्य परायण अधिकारी को स्वतः त्यागपत्र देने को मजबूर होना पड़े तो जाहिर है कि किन्हीं अनुचित दबाव में उसे यह अप्रिय फैसला लेना पड़ा। संस्थान और व्यक्ति हमेशा रहे हैं ।और रहेंगे मगर जिस ढंग से प्रोफेसर मिश्र को पद छोड़ना पड़ा और किसी भी निष्ठावान अधिकारी का मनोबल तोड़ने वाला है।

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