वीएन मिश्रा के फ़ेसबुक से |
चाहे वह मरीजो और उनके परिजनों को नि:शुल्क भोजन,डिजिटल कार्ड, जेनेरिक दवाइयां, कडकडाती ठंढ में कंबल घर की व्यवस्था, मरीजो को इमरजेंसी और ओपीडी तक लाने के लिए अटल ई रिक्शा, इमरजेंसी वार्ड में नि:शुल्क इलाज, प्रतिदिन सुबह मरीज और उनके परिजन को योग करने की व्यवस्था रही हो या रात 2 बजे तक स्वयं अस्पताल का चक्रमण कर व्यवस्थाओं की निगरानी का प्रयास। इन सभी ने अस्पताल की व्यवस्थाओं को एक नई रवानगी दी थी। इससे अस्पताल आने वाले मरीजों में आशा की एक नई उम्मीद जागी थी। इसके बाद भी अगर किसी कर्तव्य परायण अधिकारी को स्वतः त्यागपत्र देने को मजबूर होना पड़े तो जाहिर है कि किन्हीं अनुचित दबाव में उसे यह अप्रिय फैसला लेना पड़ा। संस्थान और व्यक्ति हमेशा रहे हैं ।और रहेंगे मगर जिस ढंग से प्रोफेसर मिश्र को पद छोड़ना पड़ा और किसी भी निष्ठावान अधिकारी का मनोबल तोड़ने वाला है।