आप मुझे पढ़ते हैं न , मैं पूरा वह नहीं जो लिख रहा हूँ..

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आप  मुझे पढ़ते हैं न
मैं पूरा वह नहीं जो लिख रहा हूँ..

इक अधूरी-सी दास्तां हूँ
जो अधूरेपन में ही पूरी होने की
ज़िद कर रही है ...!

मुझसे मिलकर
जब आप
मेरे चेहरे और बातों में मुझको पढ़ते हैं
सच कह रहा हूँ
वह तो मैं बिल्कुल नहीं हूँ..,

इक बुलबुला हूँ
वक़्त के गहरे समंदर
में उछल कर खो रहा हूँ...!

लेखक : विमल (शोधार्थी , बीएचयू )
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