आंखों के सामने हैं कई चेहरे,
जिन्हें देखकर मन बहुत डरता।
इस दुनिया में कोई किसी का नहीं होता,
हम किसपर करें भरोसा मन यही है सोचता।
यहा तो आगे पीछे लेकर सब खड़े हैं खंजर,
मौका खोजते है कि कब घूसा दे किसके अंदर।
यहाँ तो अपना ही अपने को ही है लूटता,
किस पर करें भरोसा मन यही है सोचता।
अपने ऑसू को कभी किसी को न दिखाना,
पोछेगा कोई नही, सौदा करेगा जमाना।
क्योंकि लोगों के जज्बातों के साथ हर कोई है खेलता,
किस पर करें भरोसा मन यही है सोचता।
विश्वासघात एक ऐसी बीमारी है,
जैसे फैली कोई महामारी है।
इससे हर कोई है जूझता,
किसपर करे भरोसा मन यही है सोचता।
ये मतलब की दुनिया है यहाँ हर कोई,
मतलब के लिए है जीता।
किसी को कुछ हो जाए किसी को फर्क नहीं पड़ता,
न जाने ये दुनिया की कैसी रीत है।
यहाँ हर कोई है एक दुसरे को कोसता।
किसपर करे भरोसा मन यही है सोचता।
आयुष सिंह 'विभु' ( लेखक बीए का छात्र है )