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होली खुशियों और रंगों का त्योहार है। जब बात भारत देश की हो तो यहां की होली विश्वप्रसिद्ध है। यहां कई ऐसी जगह है जहां अलग-अलग तरीकों से होली मनाई जाती है। क्योंकि यहां की संस्कृति और रीति-रिवाज उतने ही रंगीन है जितना की होली में रंग। आज हम आपको ऐसी ही कुछ जगह की होली के बारें में बताने जा रहे है जहां होली मनाने का तरीका बहुत ही अलग और अनोखा है, ऐसे में आप इन जगहों पर जाकर अपनी होली की छुट्टियों का मजा उठा सकते है। आइए जानते हैं -
पुष्कर की कपड़ा फाड़ होली
वैसे तो राजस्थान में कई जगह है जहां की होली उत्सव को मनाने का तरीका थोड़ा अलग है। लेकिन इन सब में अजेमर के पास बसे ब्रह्मा मंदिर से प्रसिद्ध पुष्कर की कपड़ा फाड़ होली बहुत प्रसिद्ध है। होली मनाने के लिए यहां जाने से बेहतर कुछ नहीं हो सकता, क्योंकि यहां कई देसी और विदेश पर्यटक अपने बेगपैक्स के साथ घूमते हुए और होली का फ़ूड एन्जॉय करते नजर आते है। यहां मौजूद घाटों और मंदिरों के पास जमकर जश्न मनाया जाता है, लोग एक दूसरे को रंग लगाने के साथ लोग गुजिया खाने और भांग ठंडाई प्रतियोगिता में भी भाग लेते दिखाई देते हैं। इसके अलावा यहां होली का रंग लगाते समय एक दूसरे के कपडे फाड़ने की एक अलग ही होड़ मची रहती है। यहां लोग कूल म्यूजिक के साथ कपड़ो के हवा में रंग भी उड़ाते है।
मथुरा-वृंदावन की लट्ठमार होली
देश की प्रमुख फेस्टिवल में मथुरा-वृन्दावन की होली भी काफी प्रसिद्ध है। यहां एक अनोखी परंपराओं में से एक लठमार होली मनाई जाती है जो उत्तर प्रदेश के मथुरा-वृंदावन में मनाई जाती है। भगवान श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा में लोग लट्ठमार होली खेलने के लिए दूर-दूर से आते हैं। यहां द्वारिकाधीश मंदिर और वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में होली का है यह उत्सव बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। यहीं नहीं यहां की होली में देश-विदेश के कई पर्यटक भी शामिल होती है। दरअसल लट्ठमार होली की परंपरा में महिलाएं डंडों या लट्ठ से पुरुषों पर वार करती हैं और खेल-खेल में उन्हें मारती हैं, साथ ही रंग भी लगाती हैं जो भक्ति और मस्ती का एक अलग ही नजारा पेश करता है।
बरसाने की लड्डू मार होली
मथुरा से कुछ दूरी पर बसे राधा रानी की नगरी बरसाने में भी अनोखी होली मनाई जाती है। यहां छड़ीमार होली मशहूर है। छड़ीमार होली की यह खास परंपरा बरसाना में खेली जाती है। यहां होली के मौके पर होली से कुछ दिन पहले बरसाना में लड्डू मार होली भी खेली जाती है। मंदिर के पंडित लड्डू का भोग लगाते हैं, जिसके बाद भक्तों पर लड्डू फेंके जाते हैं, साथ ही अबीर-गुलाल की होली भी खेलते हैं।
उदयपुर की शाही होली
उदयपुर झीलों और शाही महलों भारत का उदयपुर कई मायने में पहचान रखता है, यहां होली की शाम को ख़ास तरीके से होलिका का दहन किया जाता है जिसे शाही होली कहा जाता है। यहां पर लोग आग जलाते हैं और शाही तरीके से इस त्यौहार को सेलिब्रेट करते हुए दिखाई देते हैं। होली पर सिटी पैलेस में मौजूद शाही निवास से एक जुलूस निकाला जाता है जो मानक चौक तक पहुंचता है, इस जुलूस में हाथी, घोड़े, बैंड बाजे के साथ कई लोग शामिल होते हैं।
रंग नहीं बारूद और गोलियों की होली
जहां एक ओर उदयपुर में राजसी ठाठ के साथ शाही होली मनाए जाती है वहीं दूसरी ओर राजस्थान के उदयपुर जिले के मेनार गांव में होलिका दहन के बाद सुनने में थोड़ा अजीब लगेगा लेकिन यहां रंग नहीं बल्कि बारूद और गोलियों से होली खेली जाती है। यहां पूरी रात बंदूकों और तोपों से गोला बारूद छोड़ा जाता है जिसे कंसुबे की रस्म कहा जाता है।
रंग नहीं एक-दूसरे पर फेंकते हैं अंगारे
मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र में भी होली की एक अनोखी परंपरा है। यहां लोग होली के दिन एक दूसरे पर रंग नहीं बल्कि अंगारे फेंकते हैं। यहां मान्यता है कि ऐसा करने से होलिका राक्षसी का अंत होता है। ऐसा ही कर्नाटक के धाड़वाड़ के बाड़ीवाला गांव में भी होता है जहां होली पर लोग आपस में एक दूसरे अंगारे फेककर होली खेलते है।
पत्थरों की खेली जाती है राड़
राजस्थान के बांसवाड़ा और डूंगरपुर जिले में भी वहां के आदिवासी लोगों द्वारा राड़ खेली जाती है। जिसमें आदिवासी अंचल के लोग होलिका दहन के बाद अगली सुबह रंग गुलाल से होली से नहीं बल्कि राख के अंदर दबी हुई आग पर चलते हैं और एक दूसरे पर पत्थर फेंककर खूनी होली खेलते हैं। यहां एक दूसरे से राड़ खेली जाती है जिसे लड़ाई या युद्ध कहा जाता है। जहां होली से एक दिन पहले पठारों को इकठ्ठा कर एक दूसरे पर पत्थर फेंक कर होली खेली जाती है।