इमेज और रियलिटी का अंतर अनुसूचित जनजाति की अव्यक्त पीड़ा : हर्ष चौहान

Sachin Samar
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"अनुसूचित जनजाति के संवेदना को समझना जरूरी"

"अनुसूचित जनजाति को लेकर है लोगों में गलत धारणा"

भारतीय जन संचार संस्थान में 'शुक्रवार संवाद' कार्यक्रम में शामिल हुए राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष हर्ष चौहान


नई दिल्ली, 6 जनवरी। "इमेज और रियलिटी का अंतर अनुसूचित जनजाति की अव्यक्त पीड़ा है, जिसे सुना नहीं गया" ये बातें राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष हर्ष चौहान ने भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) द्वारा आयोजित कार्यक्रम शुक्रवार संवाद के दौरान कही। इस अवसर पर आईआईएमसी के अपर महानिदेशक प्रो. आशीष गोयल, डीन (अकादमिक) प्रो. गोविंद सिंह एवं डीन (छात्र कल्याण) प्रो. प्रमोद कुमार सहित आईआईएमसी के सभी केंद्रों के संकाय सदस्य एवं विद्यार्थी उपस्थित थे।


श्री चौहान ने कहा अनुसूचित जनजाति को लेकर लोगों में गलत धारणाएं हैं। फिल्म और पुस्तक में पढ़ी गयी जानकारी के आधार पर लोग इस समुदाय के प्रति गलत छवि बना ले रहे हैं जबकि सचाई यह नहीं है। अंग्रेजों के पहले अनुसूचित जनजाति की छवि बेहतर थी। हॉलीवुड फिल्मों ने समुदाय की छवि को काफी नुकसान पहुँचाया है। हालांकि संविधान निर्माताओं ने जनजाति समुदाय की संवेदनाओं को समझा है। संविधान निर्माण के दौरान अनुसूचित जनजाति समुदाय को लेकर खूब मंथन किया गया और उनकी आवश्यकताओं के अनुसार उन्हें अधिकार दिए गए। 


उन्होंने आगे कहा अनुसूचित जनजाति की अस्मिता, अस्तित्व और विकास को लेकर अमृत महोत्सव में कार्य किया जा रहा है। श्री चौहान ने संबोधित करते हुए कहा कि जनजाति समुदाय की विशेषताओं को लेकर प्राथमिक स्तर पर शोध की  आवश्यकता है। वन में रहने वाले लोग हिंसक होते हैं इस इमेज को सुधारना होगा, जिसमें मीडिया की भूमिका महत्वपूर्ण है। मीडिया को ग्राउंड जीरो के जरिये छवि निर्माण करने की जरूरत है। अंत में उन्होंने सभी से आग्रह करते हुए कहा कि समय निकाल कर जनजाति समुदायों के पास जरूर जाएं। 


कार्यक्रम का संचालन डीन (छात्र कल्याण) प्रो. प्रमोद कुमार ने और धन्यवाद ज्ञापन सुश्री मनपा ने दिया। 

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