प्राइवेट स्कूल कालेजों की ग़ुलामी जीकर आप भारत को विश्व गुरु नहीं बना सकते

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अमरीका में पिछले पांच साल में निजी मुनाफे पर चलने वाले 1200 कालेज बंद हो गए हैं। हर महीने 20 कालेज बंद होने का औसत निकलता है। निजी मुनाफे के लिए खुले कालेजों में छात्रों का एडमिशन घटता जा रहा है। 2014 में जितना था उसका अब आधा हो गया है। यह होना था। इसकी वजह है। मुनाफे के लिए खोले गए इन निजी कालेजों का प्रदर्शन बहुत ख़राब हो रहा था। 

2012 में केविन लैंग और रसेल विंसटिन ने इस पर एक अध्ययन किया था। खराब प्रदर्शन के बाद भी छात्रों ने यहां एडमिशन के लिए महंगे लोन लिए। एक पूरी पीढ़ी तैयार हो गई जो महंगे कालेजों से पढ़कर निकली थी मगर बेरोज़गारी गले लग गई। शिक्षा लोन ने छात्रों को जीवन भर के लिए कर्ज़ में डूबा दिया। बिजनेस स्टैंडर्ड में नोआ स्मिथ ने लिखा है। 

भारत के संदर्भ में यह उदाहरण काम आ सकता है। ठीक है कि चुनावों में इन मुद्दों पर चर्चा नहीं होती है और न ही शिक्षा के सवाल पर कोई चुनाव हारता है। लेकिन ऐसी जानकारी पर नज़र रखनी चाहिए। चुनाव बाद आने वाली सरकार के सामने जनदबाव बनाया जा सकता है कि प्राइवेट कालेज के नाम पर लूट बंद हो और सरकार ख़र्च करे। बेशक छात्र कुछ अधिक फीस सरकारी संस्थान को दे दें मगर प्राइवेट संस्थानों में लूट की समीक्षा होनी चाहिए। देखा जाना चाहिए कि जितनी महंगी फीस दी जा रही है उसके अनुपात में रोज़गार मिल रहा है या नहीं। 

भारत में प्राइवेट मेडिकल कालेज करोड़ों की फीस लेकर मेडिकल छात्रों को गुलाम से भी बदतर बना रहे हैं। वे मजबूर हो रहे हैं कि दवा कंपनियों की गुलामी करें। वर्ना एमडी की पढ़ाई की फीस नहीं दे पाएंगे। यही हाल इंजीनियरिंग का भी है। अब हमारे देश में 20-30 साल हो गए प्राइवेट शैक्षणिक संस्थानों के। इनकी गुणवत्ता पर बहस होनी चाहिए। आज हालत ये है कि हज़ार के करीब इंजीनियरिंग कालेज बंद हो गए हैं। जो प्राइवेट  चल रहे हैं उनमें बड़ी संख्या में सीटें खाली रह जा रही हैं।

पिछले साल इंडियन एक्सप्रेस में ख़बर आई थी। अखिल भारतीय तकनीकि शिक्षा परिषद( AICTE) से इंजीनियरिंग कालेजों ने 1 लाख 30 हज़ार से अधिक सीटों को बंद करने की अनुमति मांगी है। 494 कालेजों ने अपने कोर्स बंद कर देने की अनुमति मांगी है। इन खराब इंजीनियरिंग कालेजों में कितने छात्रों ने लोन लेकर एडमिशन लिया और उन्हें नौकरी के नाम पर कुछ नहीं मिला। क्या यही शिक्षा हमारे युवा उससे आधी कीमत पर हासिल नहीं कर सकते थे?  

इसलिए अपने आस-पास हो रही घटनाओं पर नज़र रखिए। यह चुनाव बर्बाद हो चुका है। पिछले हर चुनावों की तरह। मगर देखिए कि गांव कस्बों में कालेजों को बर्बाद कर क्या आपको लाभ मिला है। आपकी शिक्षा का बजट बढ़ा है। सरकारी स्कूलों और कालेजों के सिस्टम को मज़बूत करना होगा। फिर से खड़ा करना होगा वरना ग़रीब और साधारण परिवारों के लोग अच्छी शिक्षा से वंचित होंगे। 

प्राइवेट स्कूल और कालेज लूट का अड्डा भर हैं। मनमानी फीस के खिलाफ नकली आंदोलन से कुछ नहीं होगा। मीडिया न कवर करेगा और कवर करेगा तो भी कुछ नहीं होगा। हमने स्कूलों पर 15 एपिसोड और कालेजों पर अनगिनत एपिसोड किए हैं। मीडिया घरानों क अपने प्राइवेट स्कूल और कालेज खुल गए हैं। नेताओं का पैसा स्कूलों में लगा है। प्राइवेट शिक्षा उनकी दौलत को दुगनी तिगुनी करने में लगी है। आप कंगाल हो रहे हैं। 

80 फीसदी से अधिक प्राइवेट संस्थान सपना दिखाते हैं और आप लालच में पड़कर लोन ले बैठते हैं। जब अंदर जाते हैं तब पता चलता है कि न तो काबिल शिक्षक है और न ही पढ़ने की सारी व्यवस्था। अपने साथ हुए इन हादसों को अब साझा कीजिए। अगले पांच साल के लिए नई बहस पैदा कीजिए। शिक्षा की क्वालिटी मांगिए। अच्छी शिक्षा मांगिए। मीडिया से नहीं, सरकार से। आप़ ख़ुद से पूछिए। किसी भी चुनाव या इस चुनाव में, चुनाव के पहले या चुनाव के बाद क्या आप शिक्षा को लेकर बहस करते हैं, सोचते हैं, इसके आधार पर किसी नेता का मूल्यांकन करते हैं?

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