नेता जी फगुआय रहे है,
सीट के लिए रिसियाय रहे हैं
गुजरना ना उनकी गली से,
भांग पिए बतियाय रहे है।
सपने चुनाव के आय रहे हैं
खुद को उम्मीदवार बताएं रहे
नेता जी फगुआय रहे है,
सीट के लिए रिसियाय रहे हैं।
काम किए कुछ ना 5 साल मा,
फिर भी भांग पिए गिनाय रहे हैं,
नेताजी फगुआय रहे है
रंग गुलाल नहीं थाल मा,
ईटा-पाथर सजाए रहे है
खुद को चौकीदार बताय रहे हैं,
गठबंधन को गरियाय रहे है,
नेताजी फगुआय रहे हैं
सीट के लिए रिसियाय रहे है।
लेखक - शिशिर यादव