भ्रष्टाचार विरोधी लोकपाल: कार्य और शक्तियां
लोकपाल क्या है?
लोकपाल एक राष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोधी निकाय है, जो लोकपाल अधिनियम, 2013 के पास होने के बाद 1 जनवरी 2014 से लागू हो गया है. इसकी निगरानी में सभी लोक सेवक आयेंगे जिनमें भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री भी शामिल हैं. यह संस्था भारत में भ्रष्टाचार रोकने की दिशा में उठाया गया एक ठोस कदम है. अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति पांच साल या 70 साल तक के लिए (जो भी पहले हो) होती है. देश के पहले लोकपाल के तौर पर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायधीश पिनाकी चन्द्र घोष को राष्ट्रपति ने लोकपाल बना दिया है.
1. इस अधिनियम को लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 कहा जा सकता है
2. यह पूरे भारत में लागू होगा
3. यह भारत और विदेशों में लोक सेवकों पर लागू होगा
लोकपाल का इतिहास
लोकपाल बिल को नौ बार (1968, 1971, 1977, 1985, 1989, 1998, 2001, 2011 और 2013) लोकसभा में पेश किया गया था तब जाकर 2013 में यह पास हुआ था. लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 को 1 जनवरी, 2014 को राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त हुई थी और इसे पूरे देश में इसी तारीख से लागू कर दिया गया है.
लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013; लोक सेवकों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के देश में लोकपाल और प्रदेशों में लोकायुक्त की नियुक्ति का मार्ग प्रशस्त करता है.
किन देशों में लोकपाल जैसी संस्था है?
दुनिया के इन देशों में भ्रष्टाचार निरोधक अधिकारियों का कार्यालय भी है जो भारत के लोकपाल के समान है.
1. यूनाइटेड किंगडम
2. स्पेन
3. बुर्किना फासो
4. नीदरलैंड
5. आस्ट्रिया
6. पुर्तगाल
7. फिनलैंड
8. डेनमार्क
9. स्वीडन
लोकपाल की संरचना
लोकपाल के पैनल में एक अध्यक्ष और 8 सदस्यों होंगे. लोकपाल का अध्यक्ष सर्वोच्च न्यायालय का वर्तमान या पूर्व न्यायाधीश या उच्च न्यायालयों का मुख्य न्यायाधीश हो सकता है या
इस पद पर साफ-सुथरी छवि का एक प्रतिष्ठित व्यक्ति चयनित हो सकता है और जिसे निम्नलिखित मामलों में कम से कम 25 वर्षों का विशेष ज्ञान और विशेषज्ञता हासिल हो.
i. एंटी करप्शन पॉलिसी
ii. सार्वजनिक प्रशासन
iii. जागरूकता (Vigilance)
iv. कानून और प्रबंधन
v. वित्त, बीमा और बैंकिंग क्षेत्र
नोट: अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार; लोकपाल के 50% सदस्य अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक और महिलाओं के समुदाय से होंगे.
लोकपाल नियुक्त करने के लिए चयन समिति में शामिल होंगे
i. प्रधान मंत्री
ii. भारत के मुख्य न्यायाधीश या उनका नामित व्यक्ति
iii. लोकसभा अध्यक्ष
iv. विपक्ष का नेता
v. भारत के राष्ट्रपति द्वारा नामांकित एक प्रसिद्ध न्यायविद
लोकपाल को कैसे हटाया जा सकता है?
लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्यों को हटाने के लिए संसद के 100 सदस्य अपने हस्ताक्षर वाली याचिका राष्ट्रपति को सौंपते हैं. राष्ट्रपति इस याचिका को सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में लाता है, सुप्रीम कोर्ट इस मामले की जाँच करता है और आरोप सही पाता है तो राष्ट्रपति के लिखित आदेश पर लोकपाल के अध्यक्ष या सदस्यों को पद से हटा दिया जाता है.
लोकपाल के अध्यक्ष या सदस्यों को निम्न दशाओं में पद से हटाया जा सकता है
1. उसे एक दिवालिया घोषित कर दिया गया. या
2. वह अपने कार्यकाल के दौरान, अपनी ऑफिस कर्तव्यों के अलावा किसी अन्य पेड जॉब में संलिप्त पाया जाता है. या
3. राष्ट्रपति की राय में, दिमाग या शरीर की दुर्बलता के कारण कार्यालय में कार्य जारी रखने के लिए अयोग्य है.
लोकपाल का अधिकार क्षेत्र
लोकपाल; कुशासन, अनुचित लाभ पहुंचाने या भ्रष्टाचार से संबंधित मामले जो किसी मंत्री या केंद्र या राज्य सरकार के सचिव के अनुमोदन से की गई प्रशासनिक कार्रवाई के खिलाफ में पीड़ित व्यक्ति द्वारा लिखित शिकायत किए जाने पर या स्वतः संज्ञान लेते हुए, जांच कर सकता है.
लेकिन लोकपाल; पीड़ित व्यक्ति को अदालत या वैधानिक न्यायाधिकरण से मिली किसी भी फैसले के संबंध में किसी प्रकार की जांच नहीं कर सकता है.
लोकपाल; सरकार से आरोपी लोक सेवकों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने के लिए कह सकता है या विशेष अदालत में भ्रष्टाचार का मामला दर्ज करा सकता है.
लोकायुक्त के कार्य
1. कुशासन की वजह से न्याय और परेशानी संबंधी नागरिकों की 'शिकायतों' की जांच.
2. सरकारी कर्मचारी के खिलाफ पद का दुरुपयोग, भ्रष्टाचार या ईमानदारी में कमी के आरोपों की जांच करना. शिकायतों और भ्रष्टाचार उन्मूलन के संबंध में इस प्रकार के अतिरिक्त कार्य की जानकारी राज्यपाल द्वारा निर्दिष्ट अधिसूचना से दी जा सकती है
अध्यक्ष और सदस्यों के वेतन और भत्ते
लोकपाल के अध्यक्ष को भारत के मुख्य न्यायाधीश के समान वेतन और भत्ते दिए जाते हैं जबकि सदस्यों को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों द्वारा प्राप्त समान वेतन और भत्ते प्राप्त होते हैं.
लोकपाल द्वारा किसकी जाँच की जा सकती है?
लोकपाल निम्न सात श्रेणियों के व्यक्तियों की जांच कर सकता है
1. भूतपूर्व प्रधानमंत्री
2. वर्तमान और पूर्व कैबिनेट मंत्री
3. वर्तमान और पूर्व संसद सदस्य
4. केंद्र सरकार के सभी क्लास 1 अधिकारी जैसे (सचिव, संयुक्त सचिव आदि)
5. सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और अन्य सरकारी निकायों के सभी श्रेणी 1 समकक्ष अधिकारी
6. गैर सरकारी संगठनों के निदेशक और अन्य अधिकारी जो केंद्र सरकार से धन प्राप्त करते हैं
7. गैर सरकारी संगठनों के निदेशक और अन्य अधिकारी जो जनता से निधि प्राप्त करते हैं और जो कि विदेशों से 10 लाख रु. तक की आय प्राप्त करते हैं और वे NGO भी जो कि सरकार से 1 करोड़ रुपये की मदद प्राप्त करते हैं.
सारांश में यह टिप्पणी करना बुद्धिमानी होगी कि भारत में भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए लोकपाल से पहले ही केंद्रीय सतर्कता आयुक्त, केंद्रीय जांच ब्यूरो जैसी कुछ भ्रष्टाचार विरोधी एजेंसियां हैं लेकिन देश में अभी भी भ्रष्टाचार का बोलबाला है और वर्ष 2018 की ग्लोबल परसेप्शन इंडेक्स की रिपोर्ट में 180 देशों की सूची में भारत 78 वें स्थान पर काबिज है.
इसलिए एक अन्य विरोधी भ्रष्टाचार एजेंसी की स्थापना से बहुत अंतर नहीं पड़ेगा क्योंकि भ्रष्टाचार आम जनता के दिमाग में है, जो अपने निजी स्वार्थों को पूरा करने के लिए दैनिक जीवन में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं.
लोकपाल क्या है?
लोकपाल एक राष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोधी निकाय है, जो लोकपाल अधिनियम, 2013 के पास होने के बाद 1 जनवरी 2014 से लागू हो गया है. इसकी निगरानी में सभी लोक सेवक आयेंगे जिनमें भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री भी शामिल हैं. यह संस्था भारत में भ्रष्टाचार रोकने की दिशा में उठाया गया एक ठोस कदम है. अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति पांच साल या 70 साल तक के लिए (जो भी पहले हो) होती है. देश के पहले लोकपाल के तौर पर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायधीश पिनाकी चन्द्र घोष को राष्ट्रपति ने लोकपाल बना दिया है.
1. इस अधिनियम को लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 कहा जा सकता है
2. यह पूरे भारत में लागू होगा
3. यह भारत और विदेशों में लोक सेवकों पर लागू होगा
लोकपाल का इतिहास
लोकपाल बिल को नौ बार (1968, 1971, 1977, 1985, 1989, 1998, 2001, 2011 और 2013) लोकसभा में पेश किया गया था तब जाकर 2013 में यह पास हुआ था. लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 को 1 जनवरी, 2014 को राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त हुई थी और इसे पूरे देश में इसी तारीख से लागू कर दिया गया है.
लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013; लोक सेवकों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के देश में लोकपाल और प्रदेशों में लोकायुक्त की नियुक्ति का मार्ग प्रशस्त करता है.
किन देशों में लोकपाल जैसी संस्था है?
दुनिया के इन देशों में भ्रष्टाचार निरोधक अधिकारियों का कार्यालय भी है जो भारत के लोकपाल के समान है.
1. यूनाइटेड किंगडम
2. स्पेन
3. बुर्किना फासो
4. नीदरलैंड
5. आस्ट्रिया
6. पुर्तगाल
7. फिनलैंड
8. डेनमार्क
9. स्वीडन
लोकपाल की संरचना
लोकपाल के पैनल में एक अध्यक्ष और 8 सदस्यों होंगे. लोकपाल का अध्यक्ष सर्वोच्च न्यायालय का वर्तमान या पूर्व न्यायाधीश या उच्च न्यायालयों का मुख्य न्यायाधीश हो सकता है या
इस पद पर साफ-सुथरी छवि का एक प्रतिष्ठित व्यक्ति चयनित हो सकता है और जिसे निम्नलिखित मामलों में कम से कम 25 वर्षों का विशेष ज्ञान और विशेषज्ञता हासिल हो.
i. एंटी करप्शन पॉलिसी
ii. सार्वजनिक प्रशासन
iii. जागरूकता (Vigilance)
iv. कानून और प्रबंधन
v. वित्त, बीमा और बैंकिंग क्षेत्र
नोट: अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार; लोकपाल के 50% सदस्य अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक और महिलाओं के समुदाय से होंगे.
लोकपाल नियुक्त करने के लिए चयन समिति में शामिल होंगे
i. प्रधान मंत्री
ii. भारत के मुख्य न्यायाधीश या उनका नामित व्यक्ति
iii. लोकसभा अध्यक्ष
iv. विपक्ष का नेता
v. भारत के राष्ट्रपति द्वारा नामांकित एक प्रसिद्ध न्यायविद
लोकपाल को कैसे हटाया जा सकता है?
लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्यों को हटाने के लिए संसद के 100 सदस्य अपने हस्ताक्षर वाली याचिका राष्ट्रपति को सौंपते हैं. राष्ट्रपति इस याचिका को सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में लाता है, सुप्रीम कोर्ट इस मामले की जाँच करता है और आरोप सही पाता है तो राष्ट्रपति के लिखित आदेश पर लोकपाल के अध्यक्ष या सदस्यों को पद से हटा दिया जाता है.
लोकपाल के अध्यक्ष या सदस्यों को निम्न दशाओं में पद से हटाया जा सकता है
1. उसे एक दिवालिया घोषित कर दिया गया. या
2. वह अपने कार्यकाल के दौरान, अपनी ऑफिस कर्तव्यों के अलावा किसी अन्य पेड जॉब में संलिप्त पाया जाता है. या
3. राष्ट्रपति की राय में, दिमाग या शरीर की दुर्बलता के कारण कार्यालय में कार्य जारी रखने के लिए अयोग्य है.
लोकपाल का अधिकार क्षेत्र
लोकपाल; कुशासन, अनुचित लाभ पहुंचाने या भ्रष्टाचार से संबंधित मामले जो किसी मंत्री या केंद्र या राज्य सरकार के सचिव के अनुमोदन से की गई प्रशासनिक कार्रवाई के खिलाफ में पीड़ित व्यक्ति द्वारा लिखित शिकायत किए जाने पर या स्वतः संज्ञान लेते हुए, जांच कर सकता है.
लेकिन लोकपाल; पीड़ित व्यक्ति को अदालत या वैधानिक न्यायाधिकरण से मिली किसी भी फैसले के संबंध में किसी प्रकार की जांच नहीं कर सकता है.
लोकपाल; सरकार से आरोपी लोक सेवकों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने के लिए कह सकता है या विशेष अदालत में भ्रष्टाचार का मामला दर्ज करा सकता है.
लोकायुक्त के कार्य
1. कुशासन की वजह से न्याय और परेशानी संबंधी नागरिकों की 'शिकायतों' की जांच.
2. सरकारी कर्मचारी के खिलाफ पद का दुरुपयोग, भ्रष्टाचार या ईमानदारी में कमी के आरोपों की जांच करना. शिकायतों और भ्रष्टाचार उन्मूलन के संबंध में इस प्रकार के अतिरिक्त कार्य की जानकारी राज्यपाल द्वारा निर्दिष्ट अधिसूचना से दी जा सकती है
अध्यक्ष और सदस्यों के वेतन और भत्ते
लोकपाल के अध्यक्ष को भारत के मुख्य न्यायाधीश के समान वेतन और भत्ते दिए जाते हैं जबकि सदस्यों को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों द्वारा प्राप्त समान वेतन और भत्ते प्राप्त होते हैं.
लोकपाल द्वारा किसकी जाँच की जा सकती है?
लोकपाल निम्न सात श्रेणियों के व्यक्तियों की जांच कर सकता है
1. भूतपूर्व प्रधानमंत्री
2. वर्तमान और पूर्व कैबिनेट मंत्री
3. वर्तमान और पूर्व संसद सदस्य
4. केंद्र सरकार के सभी क्लास 1 अधिकारी जैसे (सचिव, संयुक्त सचिव आदि)
5. सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और अन्य सरकारी निकायों के सभी श्रेणी 1 समकक्ष अधिकारी
6. गैर सरकारी संगठनों के निदेशक और अन्य अधिकारी जो केंद्र सरकार से धन प्राप्त करते हैं
7. गैर सरकारी संगठनों के निदेशक और अन्य अधिकारी जो जनता से निधि प्राप्त करते हैं और जो कि विदेशों से 10 लाख रु. तक की आय प्राप्त करते हैं और वे NGO भी जो कि सरकार से 1 करोड़ रुपये की मदद प्राप्त करते हैं.
सारांश में यह टिप्पणी करना बुद्धिमानी होगी कि भारत में भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए लोकपाल से पहले ही केंद्रीय सतर्कता आयुक्त, केंद्रीय जांच ब्यूरो जैसी कुछ भ्रष्टाचार विरोधी एजेंसियां हैं लेकिन देश में अभी भी भ्रष्टाचार का बोलबाला है और वर्ष 2018 की ग्लोबल परसेप्शन इंडेक्स की रिपोर्ट में 180 देशों की सूची में भारत 78 वें स्थान पर काबिज है.
इसलिए एक अन्य विरोधी भ्रष्टाचार एजेंसी की स्थापना से बहुत अंतर नहीं पड़ेगा क्योंकि भ्रष्टाचार आम जनता के दिमाग में है, जो अपने निजी स्वार्थों को पूरा करने के लिए दैनिक जीवन में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं.