स्वतंत्रता के बाद छोटी-छोटी रियासतों को भारतीय संघ में शामिल किया गया। जम्मू-कश्मीर को भारत के संघ में शामिल करने की प्रक्रिया शुरू करने के पहले ही पाकिस्तान समर्थित कबिलाइयों ने उस पर आक्रमण कर दिया। उस समय कश्मीर के राजा हरि सिंह कश्मीर के राजा थे। उन्होंने कश्मीर के भारत में विलय का प्रस्ताव रखा।
तब इतना समय नहीं था कि कश्मीर का भारत में विलय करने की संवैधानिक प्रक्रिया पूरी की जा सके। हालात को देखते हुए गोपालस्वामी आयंगर ने संघीय संविधान सभा में धारा 306-ए, जो बाद में धारा 370 बनी ।
धारा 370 भारतीय संविधान का एक विशेष अनुच्छेद (धारा) है जिसके द्वारा जम्मू एवं कश्मीर राज्य को सम्पूर्ण भारत में अन्य राज्यों के मुकाबले विशेष अधिकार अथवा (विशेष दर्ज़ा) प्राप्त है। देश को आज़ादी मिलने के बाद से लेकर अब तक यह धारा भारतीय राजनीति में बहुत विवादित रही है। अगर गौर करे तो मुख्य रूप से धारा 370 ही भारत-पाकिस्तान में टकराव के अहम मुद्दे हैं।
इस धारा के विशेषाधिकार के अंतर्गत कश्मीर राज्य के नागरिकों को दोहरी नागरिकता होती है जिसके कारण वो पड़ोसी राज्य के भी नागरिकता अपना कर गलत कार्यों में लिप्त हो जाते हैं।
जम्मू कश्मीर के राष्ट्रध्वज भी इस धारा के अंर्तगत अलग होता है जम्मू-कश्मीर के अन्दर भारत के राष्ट्रध्वज या राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान अपराध नहीं होता है। ये बहुत ही जटिल है इस कारण वहाँ समान रूप से भारतीयों में राष्ट्रवाद की भावना नही पनपती।
भारत के उच्चतम न्यायालय के आदेश जम्मू-कश्मीर के अन्दर मान्य नहीं होते हैं ;जिसके कारण डर के माहौल भी नही रहता और आसानी से लोग गलत कार्यों में लिप्त हो जाते।
जम्मू-कश्मीर की कोई महिला यदि भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से विवाह कर ले तो उस महिला की नागरिकता समाप्त हो जायेगी। इसके विपरीत यदि वह पकिस्तान के किसी व्यक्ति से विवाह कर ले तो उसे भी जम्मू-कश्मीर की नागरिकता मिल जायेगी।
सबसे बड़ी बात तो यह है कि धारा 370 की वजह से ही कश्मीर में रहने वाले पाकिस्तानियों को भी भारतीय नागरिकता मिल जाती है।
जिससे आतंकवाद का भी बढ़ावा मिल जाता है।
इस धारा का एक परन्तुक भी है। वह कहता है कि इसके लिये राज्य की संविधान सभा की मान्यता चाहिये। किन्तु अब राज्य की संविधान सभा ही अस्तित्व में नहीं है। जो व्यवस्था अस्तित्व में नहीं है वह कारगर कैसे हो सकती है?
जवाहरलाल नेहरू द्वारा जम्मू-कश्मीर के एक नेता पं॰ प्रेमनाथ बजाज को लिखे हुये पत्र से यह स्पष्ट होता है कि उनकी कल्पना में भी यही था कि कभी न कभी धारा 370 समाप्त होगी। पं॰ नेहरू ने अपने पत्र में लिखा है-
"वास्तविकता तो यह है कि संविधान का यह अनुच्छेद, जो जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा दिलाने के लिये कारणीभूत बताया जाता है, उसके होते हुये भी कई अन्य बातें की गयी हैं और जो कुछ और किया जाना है, वह भी किया जायेगा। मुख्य सवाल तो भावना का है, उसमें दूसरी और कोई बात नहीं है। कभी-कभी भावना ही बडी महत्त्वपूर्ण सिद्ध होती है।’’
इतिहास साक्षी है की पंडित नेहरू को ही धारा 370 के लिये जिम्मेदार माना जाता है और उन्होनो इसको लेकर भावी संकेत भी कभी दिया था कभीं न कभी तो धारा 370 समाप्त हो जायेगा ही।
आज जिस तरह भारत-पाकिस्तान में टकराव के स्तिथि बनी है इसके लिय मुख्य रूप से धारा 370 ही जिम्मेदार माना जा सकता है।
धारा 370 को अगर समाप्त किया जाय तो वह देशहित में ही बेहतर होगा।
बर्तमान समय में धारा 370 के चर्चा जोरों पर है अब देखना दिलचस्प है कि केंद्र सरकार के रुख क्या है और वो क्या निर्णय लेगी।लेकिन इतिहास के छात्र होने के नाते एक उम्मीद जरूर है की कभी न कभी तो धारा 370 समाप्त होगा ही।
(ये लेखक के निजी विचार है)
लेखक विवेक शर्मा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी में अध्यनरत हैं
|
तब इतना समय नहीं था कि कश्मीर का भारत में विलय करने की संवैधानिक प्रक्रिया पूरी की जा सके। हालात को देखते हुए गोपालस्वामी आयंगर ने संघीय संविधान सभा में धारा 306-ए, जो बाद में धारा 370 बनी ।
धारा 370 भारतीय संविधान का एक विशेष अनुच्छेद (धारा) है जिसके द्वारा जम्मू एवं कश्मीर राज्य को सम्पूर्ण भारत में अन्य राज्यों के मुकाबले विशेष अधिकार अथवा (विशेष दर्ज़ा) प्राप्त है। देश को आज़ादी मिलने के बाद से लेकर अब तक यह धारा भारतीय राजनीति में बहुत विवादित रही है। अगर गौर करे तो मुख्य रूप से धारा 370 ही भारत-पाकिस्तान में टकराव के अहम मुद्दे हैं।
इस धारा के विशेषाधिकार के अंतर्गत कश्मीर राज्य के नागरिकों को दोहरी नागरिकता होती है जिसके कारण वो पड़ोसी राज्य के भी नागरिकता अपना कर गलत कार्यों में लिप्त हो जाते हैं।
जम्मू कश्मीर के राष्ट्रध्वज भी इस धारा के अंर्तगत अलग होता है जम्मू-कश्मीर के अन्दर भारत के राष्ट्रध्वज या राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान अपराध नहीं होता है। ये बहुत ही जटिल है इस कारण वहाँ समान रूप से भारतीयों में राष्ट्रवाद की भावना नही पनपती।
भारत के उच्चतम न्यायालय के आदेश जम्मू-कश्मीर के अन्दर मान्य नहीं होते हैं ;जिसके कारण डर के माहौल भी नही रहता और आसानी से लोग गलत कार्यों में लिप्त हो जाते।
जम्मू-कश्मीर की कोई महिला यदि भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से विवाह कर ले तो उस महिला की नागरिकता समाप्त हो जायेगी। इसके विपरीत यदि वह पकिस्तान के किसी व्यक्ति से विवाह कर ले तो उसे भी जम्मू-कश्मीर की नागरिकता मिल जायेगी।
सबसे बड़ी बात तो यह है कि धारा 370 की वजह से ही कश्मीर में रहने वाले पाकिस्तानियों को भी भारतीय नागरिकता मिल जाती है।
जिससे आतंकवाद का भी बढ़ावा मिल जाता है।
इस धारा का एक परन्तुक भी है। वह कहता है कि इसके लिये राज्य की संविधान सभा की मान्यता चाहिये। किन्तु अब राज्य की संविधान सभा ही अस्तित्व में नहीं है। जो व्यवस्था अस्तित्व में नहीं है वह कारगर कैसे हो सकती है?
जवाहरलाल नेहरू द्वारा जम्मू-कश्मीर के एक नेता पं॰ प्रेमनाथ बजाज को लिखे हुये पत्र से यह स्पष्ट होता है कि उनकी कल्पना में भी यही था कि कभी न कभी धारा 370 समाप्त होगी। पं॰ नेहरू ने अपने पत्र में लिखा है-
"वास्तविकता तो यह है कि संविधान का यह अनुच्छेद, जो जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा दिलाने के लिये कारणीभूत बताया जाता है, उसके होते हुये भी कई अन्य बातें की गयी हैं और जो कुछ और किया जाना है, वह भी किया जायेगा। मुख्य सवाल तो भावना का है, उसमें दूसरी और कोई बात नहीं है। कभी-कभी भावना ही बडी महत्त्वपूर्ण सिद्ध होती है।’’
इतिहास साक्षी है की पंडित नेहरू को ही धारा 370 के लिये जिम्मेदार माना जाता है और उन्होनो इसको लेकर भावी संकेत भी कभी दिया था कभीं न कभी तो धारा 370 समाप्त हो जायेगा ही।
आज जिस तरह भारत-पाकिस्तान में टकराव के स्तिथि बनी है इसके लिय मुख्य रूप से धारा 370 ही जिम्मेदार माना जा सकता है।
धारा 370 को अगर समाप्त किया जाय तो वह देशहित में ही बेहतर होगा।
बर्तमान समय में धारा 370 के चर्चा जोरों पर है अब देखना दिलचस्प है कि केंद्र सरकार के रुख क्या है और वो क्या निर्णय लेगी।लेकिन इतिहास के छात्र होने के नाते एक उम्मीद जरूर है की कभी न कभी तो धारा 370 समाप्त होगा ही।
(ये लेखक के निजी विचार है)