अपने फेसबुक वॉल पर रविश कुमार ने लिखा..
मदन मोहन मालवीय जी की आत्मा रो रही होगी। एक भव्य यूनिवर्सिटी बनाने के प्रयासों से गिरा उनका पसीना बनारस में ही सूख गया है। नहीं सूखा होता तो उनके खून पसीने से बनी बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी का एक प्रोफेसर कौशल मिश्रा मेरा नंबर फेसबुक पर शेयर नहीं करता और भारत विरोध के लिए बधाईदेने के नाम पर भीड़ को नहीं उकसाता। प्रोफेसर कौशल मिश्र हैं जो बीएचयू में राजनीति शास्त्र के विभागाध्यक्ष हैं। उम्मीद है उस विभाग के छात्रों और बाकी प्रोफेसरों को शर्म नहीं आती होगी तो कम से कम शर्म की वर्तनी आती होगी। महामना की यूनिवर्सिटी में ऐसा गया गुज़रा प्रोफेसर होगा, हमने कल्पना नहीं की थी।
ALTNEWS के अर्जुन सिद्धार्थ ने कौशल मिश्रा के फेसबुक पेज को खंगाला है। पाया है कि वे कई तरह की भ्रामक बातें फैलाते रहते हैं। कांग्रेस प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी का वैसा बयान पोस्ट किया है जो उन्होंने दिया ही नहीं है। यही नहीं प्रधानमंत्री की तस्वीर के साथ भी हेरा-फेरी की है। 2004 में उज्जैन की शिप्रा नदी में स्नान की तस्वीर को जनवरी 2019 में यह कहते हुए पोस्ट किया है कि गंगा में स्नान की तस्वीरे हैं। कौशल मिश्रा 2014 में भी गिरफ्तार हो चुके हैं। आप नेता पर हमले के लिए बीजेपी के कार्यकर्ताओं को उकसाने के आरोप में।
पूरा बनारस इस यूनिवर्सिटी से गौरव पाता है। अगर बनारस के लोगों में सोचने-समझने की शक्ति समाप्त नहीं हुई है, नेताओं की भक्ति में बर्बाद नहीं हुई है तो एक बार एक मिनट के लिए सोचें कि क्या एक प्रोफेसर को ऐसी हरकत करनी चाहिए थी? क्या बीएचयू को बर्बाद करने में बनारस के बुद्धिजीवी भी खुशी खुशी शामिल होना चाहेत हैं? 2014 के पहले बनारसी लोगों की ठाठ सुना करता था कि पप्पू चाय की दुकान पर व्हाईट हाउस की पोलिटिक्स का धुआं उड़ा देते हैं लेकिन अब क्या हो गया है। उनके बनारस का प्रोफेसर फेसबुक पर लोगों को उकसा रहा है। भड़का रहा है। पप्पू चाय की दुकान है या बुद्धिजीवी बनारस छोड़ गए हैं?
यही नहीं कर्नाटक से बीजेपी की सांसद हैं शोभा करांदलाजे। इनका ट्वीटर हैंडल @ShobjaBjp । इन्होंने कई पत्रकारों की तस्वीर के साथ ट्वीट किया है कि हमारा काम है देशद्रोहियों को एक्सपोज़ करना। इसमें मेरी भी तस्वीर है। सांसद महोदया को मेरे बारे में पता ही क्या होगा। अपने और हमारे प्रधानमंत्री से एक बार पूछ लें कि रवीश कुमार को एक्सपोज़ क्यों नहीं कर पाए पांच साल में। मैंने ट्वीट कर एक्सपोज़ कर दिया है और अब आप उसे दो घंटे का लाइव इंटरव्यू दे दीजिए।
क्या अब भी आपको शक है कि यह काम संगठित रूप से नहीं हो रहा है। इसे पार्टी के कार्यकर्ता से लेकर सांसद तक का समर्थन नहीं है। समर्थक प्रोफेसरों से लेकर सामान्य समर्थकों का समर्थन नहीं है। क्या अब भी आपको शक है कि अमित शाह और प्रधानमंत्री मोदी इस तरह की राजनीतिक संस्कृति का समर्थन नहीं करते हैं।
सोशल मीडिया पर मुझे या अभिसार, रोहिणी सिंह, निधि राजदान, बरखा दत्ता को जो गालियां और धमकियां दी गई हैं वो इन्हीं लोगों के उकसाने पर दी गई हैं। इनकी सरकार है। सरकार की शह पर समर्थकों से लेकर नेताओं तक में भय समाप्त हो गया है। लोक मर्यादा का भी डर नहीं है। सबको पता है कि कुछ नहीं होगा। बीजेपी सांसद लोगों को क्यों उकसा रही हैं। बीएचयू का प्रोफेसर लोगों को भड़का रहा है।
क्या अब भी आपको नहीं लगता है कि देश गर्त में धकेला जा चुका है। एक ऐसा तंत्र खड़ा कर दिया गया है जो अब किसी को भी देशद्रोही बता कर उसके मार दिए जाने की परिस्थिति रच सकता है। हमेशा भीड़ ही क्यों बनाते हैं ये लोग। ज़ाहिर है बुलंदशहर के इंस्पेक्टर सुबोध सिंह जैसों को मार दिए जाने के लिए।
गालियों के अलावा मुझे गोली मार देने से लेकर काट देने की धमकियां मिली हैं। पुलिस को शिकायत कर दी गई है। क्या पुलिस बीएचयू के प्रोफेसर पर कार्रवाई कर सकती है? क्या पुलिस बीजेपी की सांसद शोभा जी से पूछ सकती है कि ज़रा एक्सपोज़ करने के प्रमाण तो दीजिए। उन्होंने किस आधार पर मुझे देशद्रोही बताया है। चुनाव में कौन सा पैसा खर्च होता है देशभक्तों को पता नहीं है क्या।
अंत में मेरा सवाल भारत के राष्ट्रपति से है। मुझे बताया गया है कि बीएचयू के चांसलर रिटायर जस्टिस गिरिधर मालवीय हैं। वे प्रधानमंत्री मोदी के प्रस्तावक रहे हैं। उनके कुछ हो पाएगा, कार्रवाई करने का साहस है भी या नहीं, मैं नहीं जानता। मगर जस्टिस गिरिधर मालवीय को पत्र ज़रूर लिखूंगा ताकि महामना मालवीय की आत्मा को अफसोस न रहे कि मैंने उनकी विरासत संभाल रहे उनके वारिसों को नहीं झकझोरा था। इसका फैसला महामना की आत्मा करेगी कि उनके नाम को जीने वाले में किरदार था या नहीं।
वैसे मेरी अपील राष्ट्रपती से है। भारत भर की यूनिवर्सिटी के चांसलर या अभिभावक वही माने जाते हैं। क्या वे प्रोफेसर कौशल मिश्र को बर्ख़ास्त करेंगे? अगर नहीं तो मुझे बेहद अफसोस के साथ यह राय बनानी पड़ेगी कि ट्रोल संस्कृति को मंज़ूरी देने के मामले में आदरणीय राष्ट्रपति भी जाने-अनजाने में शामिल हैं। यह कितना दुखद होगा। क्या भारत के महान गणतंत्र के अभिभावक राष्ट्रपति एक प्रोफेसर को बर्खास्त तक नहीं कर सकते? विकल्प उनके पास है। अपनी पूर्व राजनीतिक विचारधारा के मोह में फंसे रहे या फिर बर्खास्त कर अभिभावक होने की परंपरा को आगे बढ़ाएं।
अंत में रविश कुमार ने लोगों से आग्रह किया, जिन लोगों को मेरा नंबर मिला है, वे मुझे न फोन करें और न मेसेज। कई हज़ार मेसेज आ गए हैं। आप सभी चाहने वालों का शुक्रिया। किसी के साथ अभद्र भाषा का व्यवहार न करें। ये काम सिर्फ नरेंद्र मोदी और उनके समर्थकों के लिए रिज़र्व रहने दें।
(रविश कुमार के फेसबुक वॉल से)